Posts

Showing posts from March, 2020

राजस्थान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

30 मार्च, 2020 राजस्थान दिवस  आज 'राजस्थान दिवस' है। शूरवीरां री धरती, महाराणा प्रताप री जनमभूमि, राणा सांगा अर दानवीर भामाशाह री मायड़ भूमि, राजस्थानी भाषा रा अमर कवि कन्हैयालाल जी सेठिया अर म्हांरी जनमभूमि, धोरां री धरती राजस्थान, जकै रा जिता गुण गावां बिता ही थोड़ा है। जय-जय राजस्थान।सभी राजस्थानवासियों को 'राजस्थान दिवस' की हार्दिक शुभकामनाएं। इस अवसर पर प्रस्तुत है श्री कन्हैयालाल जी सेठिया की एक प्रसिद्ध कविता- 'धरती धोरां री' - धरती धोरां री ! ************** आ तो सुरगां नै सरमावै, ईं पर देव रमण नै आवै, ईं रो जस नर नारी गावै, धरती धोरां री ! सूरज कण कण नै चमकावै, चन्दो इमरत रस बरसावै, तारा निछरावल कर ज्यावै, धरती धोरां री ! काळा बादलिया घहरावै, बिरखा घूघरिया घमकावै, बिजली डरती ओला खावै, धरती धोरां री ! लुळ लुळ बाजरियो लैरावै, मक्की झालो दे’र बुलावै, कुदरत दोन्यूं हाथ लुटावै, धरती धोरां री ! पंछी मधरा मधरा बोलै, मिसरी मीठै सुर स्यूं घोलै, झीणूं बायरियो पंपोळै, धरती धोरां री ! नारा नागौरी हिद ताता, मदुआ ऊंट अणूंता खाथा ! ईं रै घोड़

'राजस्थान स्थापना दिवस' 30 मार्च एक विहंगावलोकन

Image
'राजस्थान स्थापना दिवस' 30 मार्च एक विहंगावलोकन ***************************** राजस्थान शब्द का अर्थ है- ‘राजाओं का स्थान’। ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आज़ाद करने की घोषणा करने के बाद जब सत्ता-हस्तांतरण की कार्यवाही शुरू की गई, तब लग रहा था कि आज़ाद भारत का राजस्थान प्रांत बनना और राजपूताना के तत्कालीन हिस्से का भारत में विलय  दूभर कार्य साबित हो सकता है। आज़ादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना की देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य में भी अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़-सी लग गयी थी, उस समय वर्तमान राजस्थान की भौगालिक स्थिति के नजरिये से देखें तो राजपूताना के इस भूभाग में कुल बाईस देशी रियासतें थी। राजस्थान दिवस समारोह इनमें एक रियासत अजमेर मेवाड़ प्रांत को छोड़ कर शेष देशी रियासतों पर देशी राजा महाराजाओं का ही राज था। अजमेर-मेरवाडा प्रांत पर ब्रिटिश शासकों का कब्जा था। इस कारण यह तो सीधे ही स्वतंत्र भारत में आ जाती, मगर शेष इक्कीस रियासतों का विलय होना यानि एकीकरण कर ‘राजस्थान’ नामक प्रांत बनाया जाना था। सत्ता की होड़ के चलते यह बड़ा ही दूभर लग रहा था क्योंकि इन दे

राजस्थान दिवस पर एक संकल्प 'आओ चलें जड़ों की ओर'

राजस्थान दिवस पर एक संकल्प 'आओ चलें जड़ों की ओर' ------------------------------------------ आज राजस्थान दिवस है। क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान हमारे देश का सबसे बड़ा राज्य है और इसकी जनसंख्या लगभग 7.5 करोड़ है। साथ ही लाखों मारवाड़ी भाई व्यापार के सिलसिले में पूरे देश में बसे हुए हैं। किसी भी प्रदेश की कुछ खास विशेषताएं होती हैं। राजस्थान एक ओर जहां थार के रेगिस्तान के लिए प्रसिद्ध है, वहीं शिल्पकला के अद्वितीय नमूने अजेय दुर्गों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां के रणबांकुरों की शौर्य गाथाएं इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। यहां के महाकवियों ने अपने राजा-महाराजाओं की वीर गाथाओं को महाकाव्यों में गाया है। यहां की समृद्ध संस्कृति, परम्परा और मेहमानवाजी का, यहां की लोक कलाओं और लोक गीतों का बखान करने के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं है। अपनी जन्मभूमि, अपनी मातृभूमि के मैं जितने गुण गाऊं, उतने कम है।              इन सब विशेषताओं के अलावा अगर किसी प्रदेश की अपनी कोई विशेष पहचान होती है तो वह है वहां बोली जाने वाली भाषा। राजस्थान में मूल रूप से राजस्थानी भाषा ही बोली जाती है लेकि

पुस्तक समीक्षा स्टार समाचार में प्रकाशित

Image
पुस्तक: जीना इसी का नाम है लेखक: राजकुमार जैन राजन प्रकाशक: अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली,  नई दिल्ली- 110030 संस्करण: 2020 मूल्य: 200/- (सजिल्द) मानवीय मूल्यों, उच्च आदर्शों और राष्ट्रीयता का जीवंत दस्तावेज है- 'जीना इसी का नाम है' 'जीना इसी का नाम है' राजकुमार जैन राजन का सद्य: प्रकाशित आलेख-संग्रह है। जैसा कि लेखक ने स्पष्ट किया है कि ये आलेख पिछले 30 वर्षों के कालखंड में अलग-अलग समय और अवसरों पर विभिन्न पत्रिकाओं का संपादकीय दायित्व निभाते हुए लिखे गए हैं, वे पुस्तकाकार में आज हमारे सामने हैं। राजन बाल साहित्यकार के रूप में भी जाने जाते हैं, लेकिन इस आलेख संग्रह को पढ़ने से उनका एक नया रूप हमारे समक्ष प्रकट होता है और वह है एक निबन्धकार का रूप, जो धीर है, गम्भीर है और समाज में घटित होने वाली घटनाओं के प्रति सजग भी है। राजन का दृष्टिकोण साफ एवं शीशे की तरह पारदर्शी है, उनकी सोच सकारात्मक है। अपने आत्मकथ्य में वे कहते हैं- ' जीवन की सुन्दरता इतनी सुन्दर वह आकर्षक नहीं है। सब कुछ हमारी आशाओं के अनुकूल नहीं होता। 'दिया तले अंधेरा' वाली कहावत

राजस्थान का प्रसिद्ध लोक उत्सव गणगौर

Image
राजस्थान का प्रसिद्ध लोक उत्सव गणगौर *********************************** गणगौर राजस्थान का एक प्रमुख लोक उत्सव है, जिसे सुहागन स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु एवं उत्तम स्वास्थ्य के लिए मनाती हैं।यह चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तीज को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने अखंड सुहाग के लिए और कुंवारी कन्याएं इच्छित वर की प्राप्ति के लिए गौर-ईसर अर्थात् शिव-पार्वती जी की पूजा करती हैं। गणगौर राजस्थान में आस्था, विश्वास और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा त्योहार है।           यह होलिका दहन के दूसरे दिन से ही शुरू हो जाता है। यह चैत्र कृष्णा प्रतिपदा से लेकर चैत्र शुक्ला तृतीया तक चलने वाला उत्सव है। ऐसा माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं और आठ दिनों के बाद इसर जी उन्हें वापस ले जाने के लिए आते हैं। इससे पहले दूज को गणगौर की शाही सवारी निकाली जाती है, उन्हें तरह-तरह के पकवानों से 'सिंजारा' कराया जाता है। इसी दिन घर की बहन-बेटियों के भी सिंजारे कराए जाते हैं। उन्हें अपनी सामर्थ्य के अनुसार नए कपड़े, मिठाई और नकद उपहार दिए जाते हैं। तीज के दिन शहर मे

महादेवी वर्मा जी की प्रसिद्ध कविताएं

आधुनिक युग की मीरा कही जाने वाली छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा जी की कुछ प्रसिद्ध कविताएं यहां पर प्रस्तुत हैं- मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! *********************** मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल प्रियतम का पथ आलोकित कर! सौरभ फैला विपुल धूप बन मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन! दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित, तेरे जीवन का अणु गल-गल पुलक-पुलक मेरे दीपक जल! तारे शीतल कोमल नूतन माँग रहे तुझसे ज्वाला कण; विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं हाय, न जल पाया तुझमें मिल! सिहर-सिहर मेरे दीपक जल! जलते नभ में देख असंख्यक स्नेह-हीन नित कितने दीपक जलमय सागर का उर जलता; विद्युत ले घिरता है बादल! विहँस-विहँस मेरे दीपक जल! द्रुम के अंग हरित कोमलतम ज्वाला को करते हृदयंगम वसुधा के जड़ अन्तर में भी बन्दी है तापों की हलचल; बिखर-बिखर मेरे दीपक जल! मेरे निस्वासों से द्रुततर, सुभग न तू बुझने का भय कर। मैं अंचल की ओट किये हूँ! अपनी मृदु पलकों से चंचल सहज-सहज मेरे दीपक जल! सीमा ही लघुता का बन्धन है अनादि तू मत घड़ियाँ गिन मैं दृग के अक्षय कोषों से- तुझमें भरती ह

प्रसिद्ध छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर एक आलेख

प्रसिद्ध छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर एक आलेख जीवन परिचय महादेवी वर्मा (26 मार्च, 1907-11 सितंबर, 1987) हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत के साथ महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती हैं। उन्हें आधुनिक मीरा भी कहा गया है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं। उनका बाल-विवाह हुआ परंतु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर बनी रहीं। वे भारत की 50 सबसे यशस्वी महिलाओं में भी शामिल हैं। महादेवी वर्म

नव संवत्सर का प्रारम्भ है उगादि पर्व

Image
नव संवत्सर का प्रारम्भ उगादि पर्व March 23, 2020 • सरिता सुराणा • लेख *सरिता सुराणा उगादि या फिर जिसे नूतन सम्वत्सर युगादि के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण भारत का एक प्रमुख पर्व है। इसे कर्नाटक, आंध्र-प्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्यों में नववर्ष के रुप में मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र माह के पहले दिन मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से यह पर्व मार्च या अप्रैल में आता है। दक्षिण भारत में इस पर्व को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है क्योंकि वसंत आगमन के साथ ही किसानों के लिए यह नयी फसल के आगमन की खुशी का पर्व भी होता है।    क्यों मनाते हैं उगादि उगादि के पर्व को लेकर कई सारी मान्यताएं प्रचलित हैं, ऐसी ही एक मान्यता के अनुसार शिवजी ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया था कि कहीं भी उनकी पूजा नहीं की जायेगी, लेकिन आंध्र-प्रदेश में उगादि के अवसर पर ब्रह्मा जी की ही पूजा की जाती है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने ब्रह्मांड की रचना शुरु की थी। यही कारण है कि इस दिन को कन्नड़ तथा तेलुगु नववर्ष के रुप में भी मनाया जाता है। इसके साथ ही पौराणिक कथाओं के अ

नव संवत्सर का प्रारम्भ उगादि पर्व

नव संवत्सर का प्रारम्भ उगादि पर्व March 23, 2020 • सरिता सुराणा • लेख https://shabdpravah.page/article/nav-sanvatsar-ka-praarambh-ugaadi-parv/LlEKcv.html *सरिता सुराणा उगादि या फिर जिसे नूतन सम्वत्सर युगादि के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण भारत का एक प्रमुख पर्व है। इसे कर्नाटक, आंध्र-प्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्यों में नववर्ष के रुप में मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र माह के पहले दिन मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से यह पर्व मार्च या अप्रैल में आता है। दक्षिण भारत में इस पर्व को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है क्योंकि वसंत आगमन के साथ ही किसानों के लिए यह नयी फसल के आगमन की खुशी का पर्व भी होता है। क्यों मनाते हैं उगादि उगादि के पर्व को लेकर कई सारी मान्यताएं प्रचलित हैं, ऐसी ही एक मान्यता के अनुसार शिवजी ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया था कि कहीं भी उनकी पूजा नहीं की जायेगी, लेकिन आंध्र-प्रदेश में उगादि के अवसर पर ब्रह्मा जी की ही पूजा की जाती है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने ब्रह्मांड की रचना शुरु की थी। यही कारण है कि इस दिन को कन्नड़ तथा तेलुगु

दक्षिण भारत का प्रमुख पर्व है उगादि, जानें परंपरा व इतिहास

Image
दक्षिण भारत का प्रमुख पर्व है उगादि जानें परंपरा व इतिहास 24 Mar, 2020 12:00 IST | Sakshi उगादी पच्चड़ी उगादी के दिन ही भगवान श्री राम का राज्याभिषेक हुआ था इसी दिन ब्रह्मा जी ने ब्रह्मांड की रचना शुरु की थी उगादी जो  नूतन संवत्सर या युगादि के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण भारत का प्रमुख पर्व है। इसे कर्नाटक, आंध्र-प्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्यों में नववर्ष के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र माह की प्रतिपदा को मनाया जाता है। ग्रेगेरियन कैलेंडर के हिसाब से यह पर्व मार्च या अप्रैल में ही आता है। दक्षिण भारत में इस पर्व का बड़ा महत्व है क्योंकि वसंत के आगमन के साथ ही किसानों के लिए यह नयी फसल के आगमन की खुशी का पर्व भी होता है।  क्यों मनाते हैं उगादी उगादी के पर्व को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक मान्यता के अनुसार गवान शिवजी ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया था कि संसार में कभी उनकी पूजा न हो, लेकिन आंध्र-प्रदेश में उगादी के अवसर पर ब्रह्मा जी की ही पूजा की जाती है क्योंकि इसी दिन ब्रह्मा जी ने ब्रह्मांड की र
https://hindi.sakshi.com/news/telangana/ugadi-fesival-telangana-75849

गिरिजा कुमार माथुर का गीत- आज जीत की रात पहरुए! सावधान रहना

कुछ साहित्यिक रचनाएं ऐसी होती हैं जो वर्षों तक अपनी महत्ता कायम रखती हैं। आदरणीय गिरिजा कुमार माथुर का यह गीत भी उसी श्रेणी में आता है। हालांकि यह उन्होंने से स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लिखा था, लेकिन आज जब हमारा देश संक्रमण काल से गुजर रहा है तो इस गीत की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। आइए पढ़ते हैं इसे और एक जिम्मेदार नागरिक होने का कर्त्तव्य निभाने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हैं। आज जीत की रात पहरुए! सावधान रहना ******************* - गिरिजा कुमार माथुर खुले देश के द्वार अचल दीपक समान रहना प्रथम चरण है नये स्वर्ग का है मंज़िल का छोर इस जन-मंथन से उठ आई पहली रत्न-हिलोर अभी शेष है पूरी होना जीवन-मुक्ता-डोर क्योंकि नहीं मिट पाई दुख की विगत साँवली कोर ले युग की पतवार बने अंबुधि समान रहना। विषम शृंखलाएँ टूटी हैं खुली समस्त दिशाएँ आज प्रभंजन बनकर चलतीं युग-बंदिनी हवाएँ प्रश्नचिह्न बन खड़ी हो गयीं यह सिमटी सीमाएँ आज पुराने सिंहासन की टूट रही प्रतिमाएँ उठता है तूफान, इंदु! तुम दीप्तिमान रहना। ऊंची हुई मशाल हमारी आगे कठिन डगर है शत्रु हट गया, लेकिन उसकी छाय

विश्व कविता दिवस पर विशेष आलेख

विश्व कविता दिवस पर विशेष   कविता क्या है, मन के भावों की अभिव्यक्ति ही कविता है। कविता के जहां विविध प्रकार पाए जाते हैं, वहीं विविध आयाम भी पाए जाते हैं। कविता के विषय भी असीमित हैं। जब आपके द्वारा लिखी गई कविता पाठक के मन को झकझोर कर रख दे, उसे सोचने पर विवश कर दे तो समझना चाहिए कि आपका लिखना सार्थक रहा।  कविता लेखन के महत्त्व को देखते हुए ही सन् 1999 में पेरिस में हुए यूनेस्को के 30वें अधिवेशन में यह तय किया गया था कि हर साल 21 मार्च को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाया जाएगा। अभिव्यक्ति व कला के इस माध्यम को बढ़ावा देने के लिए ही ऐसा किया गया था। कविताएं प्राचीन काल से ही न ही सिर्फ़ मानव मन को बल्कि समाज के विभिन्न मुद्दों को कलात्मक ढंग से कहने का एक खास तरीका रही हैं। हमारे देश में प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों ने अनेक महाकाव्यों की रचना की है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में आदिकाल, भक्ति काल और उसके पश्चात रीतिकालीन कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से साहित्य को समृद्ध किया है। तत्पश्चात आधुनिक काल के कवियों ने उस परम्परा को और अधिक समृद्ध एवं गौरवशाली बनाया है। यूनेस्को का मान

श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महिला मंडल हैदराबाद का प्रेरणा सम्मान समारोह आयोजित

Image
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महिला मंडल हैदराबाद का प्रेरणा सम्मान समारोह संपन्न 19 Mar, 2020 14:08 IST | Sakshi श्रीमती सरिता सुराणा को 'प्रेरणा सम्मान' प्रदान करते हुए महिला मंडल की पदाधिकारी बहनें। हैदराबाद  : श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ महिला मंडल द्वारा डी वी कॉलोनी स्थित तेरापंथ भवन में मुनि श्री जिनेश कुमार जी आदि ठाणा 3 के सान्निध्य में उद्बोधन कार्यशाला व प्रेरणा सम्मान का आयोजन किया गया। आज यहां जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंडल की मंत्री अंजु चोरड़िया ने बताया कि नमस्कार महामंत्र से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। तत्पश्चात बहनों ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। अध्यक्षा प्रेम जी पारख ने सभी का स्वागत किया। साध्वी प्रमुखा श्री जी के संदेश का वाचन पूर्व अध्यक्ष रीता जी सुराणा नेकिया ।मुनि श्री परमानंद जी ने 'आओ पहचानो अपनी क्षमताओं को' विषय पर अपना मंगल उद्बोधन दिया। मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने फरमाया कि तेरापंथ धर्मसंघ की तीन प्रमुख संघीय संस्थाएं हैं, जिनमें प्रमुख संस्था महिला मंडल है।  डॉ. निशीता को प्रेरणा सम्मान देते हुए महिला मंडल