विश्व कविता दिवस पर विशेष आलेख

विश्व कविता दिवस पर विशेष
  कविता क्या है, मन के भावों की अभिव्यक्ति ही कविता है। कविता के जहां विविध प्रकार पाए जाते हैं, वहीं विविध आयाम भी पाए जाते हैं। कविता के विषय भी असीमित हैं। जब आपके द्वारा लिखी गई कविता पाठक के मन को झकझोर कर रख दे, उसे सोचने पर विवश कर दे तो समझना चाहिए कि आपका लिखना सार्थक रहा।
 कविता लेखन के महत्त्व को देखते हुए ही सन् 1999 में पेरिस में हुए यूनेस्को के 30वें अधिवेशन में यह तय किया गया था कि हर साल 21 मार्च को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाया जाएगा। अभिव्यक्ति व कला के इस माध्यम को बढ़ावा देने के लिए ही ऐसा किया गया था। कविताएं प्राचीन काल से ही न ही सिर्फ़ मानव मन को बल्कि समाज के विभिन्न मुद्दों को कलात्मक ढंग से कहने का एक खास तरीका रही हैं। हमारे देश में प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों ने अनेक महाकाव्यों की रचना की है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में आदिकाल, भक्ति काल और उसके पश्चात रीतिकालीन कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से साहित्य को समृद्ध किया है। तत्पश्चात आधुनिक काल के कवियों ने उस परम्परा को और अधिक समृद्ध एवं गौरवशाली बनाया है।
यूनेस्को का मानना है कि कविताओं के माध्यम से आंचलिक भाषाओं को भी बचाया जा सकता है। 21 मार्च का यह दिन कविता के रूप में मानव सभ्यता के भीतर मौजूद भाषाओं की विविधता का उत्सव है। कविताओं ने सदा से ही अपने समय की गवाही दी है, मानव मन के राग गाए हैं और लोगों को जोड़ने का काम किया है। कितने ही आंदोलनों से लेकर पर्वों तक कविताएं ही अभिव्यक्ति का सहज साधन बनी हैं। आज इस विशेष दिवस पर कुछ विशेष कविताएं आपके समक्ष प्रस्तुत हैं-

कलम, आज उनकी जय बोल
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- रामधारी सिंह 'दिनकर'

जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।

जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल।

पीकर जिनकी लाल शिखाएँ
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल।

अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
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जाना
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-केदारनाथ सिंह
मैं जा रही हूँ – उसने कहा
जाओ – मैंने उत्तर दिया
यह जानते हुए कि जाना
हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है।
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जो तुम आ जाते एक बार
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- महादेवी वर्मा
जो तुम आ जाते एक बार

कितनी करुणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार-तार
अनुराग भरा उन्माद राग

आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार।

हँस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित विराग

आँखें देतीं सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार।
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नर हो, न निराश करो मन को
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- मैथिलीशरण गुप्त
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को।

संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो, न निराश करो मन को।

प्रभु ने तुमको कर दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को।

किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जन हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
नर हो, न निराश करो मन को।

करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो
बनता बस उद्यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो।
प्रस्तुतकर्ता: सरिता सुराणा
21.03.2020

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