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Showing posts from January, 2020

क्या है हमारे गणतंत्र दिवस का इतिहास, कैसे बना हमारा संविधान

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क्या है हमारे गणतंत्र दिवस का इतिहास, कैसे बना हमारा संविधान January 25, 2020 • सरिता सुराणा • लेख   *सरिता सुराना 'देश की आन है तिरंगा मान है गंगा निशान चक्र है कमल पुष्प है.....' मुझे आज भी वो गीत याद है, जो हम गणतंत्र दिवस पर गाया करते थे। स्कूल में बहुत दिन पहले ही परेड, पीटी, लेजिम और डंबल की प्रैक्टिस शुरू हो जाती थी। मन में एक नई उमंग, नया उत्साह रहता था राष्ट्रीय त्यौहारों को मनाने का लेकिन आज़ जब देखती हूं कि स्कूलों में ये राष्ट्रीय त्यौंहार मनाने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जाती है तो बहुत दुःख होता है। आज़ गली-गली, नुक्कड़-नुक्कड़ पर कुकुरमुत्तों की तरह उग आए कान्वेंट स्कूलों ने इस परम्परा को लगभग समाप्त ही कर दिया है। इनमें गणतंत्र दिवस के नाम पर ले-देकर कुछ बच्चों को बुलाकर प्रिंसिपल झंडा फहराने का कोरम पूरा करके उन्हें घर भेज देते हैं। वहां पर न तो कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है और न ही बच्चों को गणतंत्र दिवस के बारे में कोई जानकारी दी जाती है। हां, हिन्दी मीडियम स्कूल आज़ भी पूरी रिवायत के साथ इन त्यौंहारों को मनाते हैं। व

गणतंत्र दिवस का इतिहास, 71वें गणतंत्र दिवस पर एक आलेख

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सेना की परेड (फाइल फोटो)। इनसेट में लेखिका सरिता सुराणा दिवस विशेष : गणतंत्र दिवस की पूरी कहानी, सरिता सुराणा की कलम से तेलंगाना   Yesterday, 11:55 pm फेसबुक पर शेयर करें Share On Twiter गूगल+ पर शेयर करें लिंक्डइन पर शेयर करें वाट्सएप्प पर शेयर करें 0 Comments 71वें गणतंत्र दिवस पर विशेष 'देश की आन है तिरंगा मान है गंगा निशान चक्र है कमल पुष्प है.....' मुझे आज भी वो गीत याद है, जो हम गणतंत्र दिवस पर गाया करते थे। स्कूल में बहुत दिन पहले ही परेड, पीटी, लेजिम और डंबल की प्रैक्टिस शुरू हो जाती थी। मन में एक नई उमंग, नया उत्साह रहता था राष्ट्रीय त्यौहारों को मनाने का लेकिन आज़ जब देखती हूं कि स्कूलों में ये राष्ट्रीय त्यौंहार मनाने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जाती है तो बहुत दुःख होता है। आज़ गली-गली, नुक्कड़-नुक्कड़ पर कुकुरमुत्तों की तरह उग आए कान्वेंट स्कूलों ने इस परम्परा को लगभग समाप्त ही कर दिया है। इनमें गणतंत्र दिवस के नाम पर ले-देकर कुछ बच्चों को बुलाकर प्रिंसिपल झंडा फहराने का कोरम पूरा करके उन्हें घर भेज देते हैं। वहां पर न तो

ओपन माइक इवेंट पतंग 2.0

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हुनर हाउस और नोजोटो के तत्वावधान में आयोजित ओपन माइक इवेंट पतंग 2.0 में भाग लेने वाले कवि, शायर एवं कलाकार 18.01.2020

हुनर हाउस एवं नोजोटो का ओपन माइक इवेंट पतंग 2.0 सम्पन्न

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हुनर हाऊस’ का नोजोटो ओपन माइक इवेंट संपन्न, कलाकारों ने दिखाई अपनी प्रतिभा तेलंगाना   Today, 34 minutes ago फेसबुक पर शेयर करें Share On Twiter गूगल+ पर शेयर करें लिंक्डइन पर शेयर करें वाट्सएप्प पर शेयर करें 0 Comments हैदराबाद : ‘हुनर हाऊस’ की ओर से नोजोटो ओपन माइक इवेंट, कार्यक्रम का आयोजन कॉवर्किंग में किया गया। इस आयोजन में कवि, शायर, लेखक जैसे कई उभरते कलाकारों ने भाग लिया। लोगो ने बड़े ही उत्साह के साथ अपनी कला का प्रदर्शन किया। आज़ जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि इस कार्यक्रम में हर वर्ग के लोग मौजूद थे। नोजोटो और हुनर हाउस का उद्देश्य ऐसे कार्यक्रमों से शहर भर की प्रतिभाओं को एकत्रित करके एक मंच प्रदान करना है। हुनर हाउस हैदराबाद की संस्था है। जिसका संस्थापन अभिनय भारद्वाज द्वारा किया गया है और इसका संचालन रितिका रॉय, श्रीया धपोला एवं हर्ष करते है| हैदराबाद, ओरिसा एवं रांची जैसे शहरों में ये ओपन माइक के कार्यक्रमों का आयोजन करवा चुके है। हुनर हाऊस की ऑर्गनाइजिंग टीम का यही लक्ष्य हैं कि ये आयोजन देश भर में किया जाए ताकि नवोदित प्रतिभाएं उभर कर
नववर्ष में देश खुशहाल हो और अराजकता से मुक्त हो नववर्ष की मंगल कामनाओं के साथ सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। वर्ष 2019 के समापन के साथ ही हम 2020 में प्रवेश करने जा रहे हैं। वैसे तो यह निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है लेकिन गत वर्ष कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण फैसलों वाला वर्ष रहा है। जाहिर है, उन सबका प्रभाव आने वाले नववर्ष पर भी पड़ेगा। नववर्ष में हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि वह काॅरपोरेट जोन से बाहर निकलकर पब्लिक जोन में आ जाए अर्थात शिक्षा सर्वसाधारण व्यक्ति के लिए उपलब्ध हो। सर्वशिक्षा अभियान को मात्र कागज़ों में नहीं अपितु व्यावहारिक तरीके से लागू किया जाए। प्राथमिक शिक्षा नि:शुल्क हो और मातृभाषा में हो। सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को सुधारा जाए, ताकि कोई भी बालक-बालिका शिक्षा से वंचित ना रहे। शिक्षा को सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित न रखकर उसे रोजगारोन्मुखी बनाया जाए ताकि हर हाथ को काम मिले। आज़ गली-गली और नुक्कड़-नुक्कड़ पर कुकुरमुत्तों की तरह उग आए कान्वेंट स्कूलों की बजाए नन्हे-मुन्ने बच्चों के लिए प्राकृतिक वातावरण में स्कूल खोले जाएं, जहां पर