नववर्ष में देश खुशहाल हो और अराजकता से मुक्त हो
नववर्ष की मंगल कामनाओं के साथ सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। वर्ष 2019 के समापन के साथ ही हम 2020 में प्रवेश करने जा रहे हैं। वैसे तो यह निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है लेकिन गत वर्ष कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण फैसलों वाला वर्ष रहा है। जाहिर है, उन सबका प्रभाव आने वाले नववर्ष पर भी पड़ेगा।
नववर्ष में हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि वह काॅरपोरेट जोन से बाहर निकलकर पब्लिक जोन में आ जाए अर्थात शिक्षा सर्वसाधारण व्यक्ति के लिए उपलब्ध हो। सर्वशिक्षा अभियान को मात्र कागज़ों में नहीं अपितु व्यावहारिक तरीके से लागू किया जाए। प्राथमिक शिक्षा नि:शुल्क हो और मातृभाषा में हो। सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को सुधारा जाए, ताकि कोई भी बालक-बालिका शिक्षा से वंचित ना रहे। शिक्षा को सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित न रखकर उसे रोजगारोन्मुखी बनाया जाए ताकि हर हाथ को काम मिले। आज़ गली-गली और नुक्कड़-नुक्कड़ पर कुकुरमुत्तों की तरह उग आए कान्वेंट स्कूलों की बजाए नन्हे-मुन्ने बच्चों के लिए प्राकृतिक वातावरण में स्कूल खोले जाएं, जहां पर उनके शैक्षिक विकास के साथ शारीरिक और मानसिक विकास पर भी पूरा ध्यान दिया जाए।
हम सब जानते हैं कि अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य मात्र सस्ते क्लर्क तैयार करना था, जो अंग्रेजों के लिए दुभाषिए का कार्य कर सकें, मगर आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी हम उसी गुलाम मानसिकता को ढो रहे हैं और उसी का परिणाम है कि हर साल हमारे देश में शिक्षित बेरोजगार युवाओं की संख्या लाखों में बढ़ती जा रही है। अब समय आ गया है कि हम अपनी जड़ों की ओर लौटें। केवल बाबू पैदा करने वाली शिक्षा को टाटा, बाय-बाय कहें और हस्तशिल्प कलाओं के अध्ययन और विकास पर ध्यान केंद्रित करें। कौशल विकास को बढ़ावा देकर नए रोजगार पैदा करें। युवाओं को नए भारत के निर्माण हेतु प्रेरित करें। उन्हें नए स्टार्टअप के लिए हरसंभव सरकारी और गैर-सरकारी सहायता मुहैया करवाएं। ताकि उनकी शक्ति का उपयोग निर्माण में हो, विध्वंस में नहीं। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। आज़ शिक्षा में जो अनैतिकता का समावेश हो चुका है, उसकी जगह नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा व्यवस्था की ओर ध्यान दें। शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ किताबी ज्ञान ग्रहण करना नहीं, अपितु चरित्र निर्माण हो। अगर विद्यार्थी का चरित्र उत्तम होगा तो समाज में बढ़ रहे अपराधों पर लगाम लगेगी। इसके लिए केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें मिलकर कार्य योजना तैयार करें। क्योंकि शिक्षा का विषय संविधान की समवर्ती सूची में निहित है, इसलिए राज्य सरकारों की यह जिम्मेदारी है कि वे अपने राज्य में संचालित होने वाले स्कूलों पर अपना नियंत्रण बनाए रखें।
नववर्ष में देश की कानून व्यवस्था सुदृढ़ हो। कानून का पालन सख्ती के साथ किया जाए। वह सबके लिए समान हो। बलात्कार और हत्या जैसे गम्भीर अपराधों में जमानत का प्रावधान रद्द हो। न्यायिक प्रक्रिया सुगम हो और आम आदमी की पहुंच में हो। न्याय मिलने में देरी न हो, इसके लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट में या जनता की अदालत में मुकदमों की त्वरित सुनवाई हो, जिससे जनता में न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास बना रहे। विरोध के नाम पर सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले उपद्रवियों को भी सख्त सज़ा दी जाए और उनसे नुक़सान की भरपाई भी की जाए, जिससे उन्हें भविष्य में ऐसा दोबारा न करने का सबक मिले और वे शांतिपूर्ण तरीके से अपना विरोध दर्ज कराएं। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि नववर्ष हम सबके लिए नई आशा, नई ऊर्जा और नया उत्साह लेकर आए, हम एक स्वस्थ भारत का निर्माण कर सकें, जहां कोई छोटा-बड़ा न हो, जहां ऊंच-नीच और छुआछूत जैसी कुरीतियां न हो। सबको आगे बढ़ने और उन्नति करने के समान अवसर प्राप्त हों। महिलाएं सुरक्षित हों, पुरुषों में उनके प्रति सम्मान की भावना हो। परिवार की अवधारणा को और अधिक मजबूत किया जाए, जिससे बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक अपने आपको सुरक्षित महसूस करें।
- सरिता सुराणा
फीचर एडिटर
डेली शुभ लाभ
हैदराबाद
01.01.2020
बुधवार
नववर्ष की मंगल कामनाओं के साथ सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। वर्ष 2019 के समापन के साथ ही हम 2020 में प्रवेश करने जा रहे हैं। वैसे तो यह निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है लेकिन गत वर्ष कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण फैसलों वाला वर्ष रहा है। जाहिर है, उन सबका प्रभाव आने वाले नववर्ष पर भी पड़ेगा।
नववर्ष में हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि वह काॅरपोरेट जोन से बाहर निकलकर पब्लिक जोन में आ जाए अर्थात शिक्षा सर्वसाधारण व्यक्ति के लिए उपलब्ध हो। सर्वशिक्षा अभियान को मात्र कागज़ों में नहीं अपितु व्यावहारिक तरीके से लागू किया जाए। प्राथमिक शिक्षा नि:शुल्क हो और मातृभाषा में हो। सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को सुधारा जाए, ताकि कोई भी बालक-बालिका शिक्षा से वंचित ना रहे। शिक्षा को सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित न रखकर उसे रोजगारोन्मुखी बनाया जाए ताकि हर हाथ को काम मिले। आज़ गली-गली और नुक्कड़-नुक्कड़ पर कुकुरमुत्तों की तरह उग आए कान्वेंट स्कूलों की बजाए नन्हे-मुन्ने बच्चों के लिए प्राकृतिक वातावरण में स्कूल खोले जाएं, जहां पर उनके शैक्षिक विकास के साथ शारीरिक और मानसिक विकास पर भी पूरा ध्यान दिया जाए।
हम सब जानते हैं कि अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य मात्र सस्ते क्लर्क तैयार करना था, जो अंग्रेजों के लिए दुभाषिए का कार्य कर सकें, मगर आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी हम उसी गुलाम मानसिकता को ढो रहे हैं और उसी का परिणाम है कि हर साल हमारे देश में शिक्षित बेरोजगार युवाओं की संख्या लाखों में बढ़ती जा रही है। अब समय आ गया है कि हम अपनी जड़ों की ओर लौटें। केवल बाबू पैदा करने वाली शिक्षा को टाटा, बाय-बाय कहें और हस्तशिल्प कलाओं के अध्ययन और विकास पर ध्यान केंद्रित करें। कौशल विकास को बढ़ावा देकर नए रोजगार पैदा करें। युवाओं को नए भारत के निर्माण हेतु प्रेरित करें। उन्हें नए स्टार्टअप के लिए हरसंभव सरकारी और गैर-सरकारी सहायता मुहैया करवाएं। ताकि उनकी शक्ति का उपयोग निर्माण में हो, विध्वंस में नहीं। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। आज़ शिक्षा में जो अनैतिकता का समावेश हो चुका है, उसकी जगह नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा व्यवस्था की ओर ध्यान दें। शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ किताबी ज्ञान ग्रहण करना नहीं, अपितु चरित्र निर्माण हो। अगर विद्यार्थी का चरित्र उत्तम होगा तो समाज में बढ़ रहे अपराधों पर लगाम लगेगी। इसके लिए केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें मिलकर कार्य योजना तैयार करें। क्योंकि शिक्षा का विषय संविधान की समवर्ती सूची में निहित है, इसलिए राज्य सरकारों की यह जिम्मेदारी है कि वे अपने राज्य में संचालित होने वाले स्कूलों पर अपना नियंत्रण बनाए रखें।
नववर्ष में देश की कानून व्यवस्था सुदृढ़ हो। कानून का पालन सख्ती के साथ किया जाए। वह सबके लिए समान हो। बलात्कार और हत्या जैसे गम्भीर अपराधों में जमानत का प्रावधान रद्द हो। न्यायिक प्रक्रिया सुगम हो और आम आदमी की पहुंच में हो। न्याय मिलने में देरी न हो, इसके लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट में या जनता की अदालत में मुकदमों की त्वरित सुनवाई हो, जिससे जनता में न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास बना रहे। विरोध के नाम पर सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले उपद्रवियों को भी सख्त सज़ा दी जाए और उनसे नुक़सान की भरपाई भी की जाए, जिससे उन्हें भविष्य में ऐसा दोबारा न करने का सबक मिले और वे शांतिपूर्ण तरीके से अपना विरोध दर्ज कराएं। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि नववर्ष हम सबके लिए नई आशा, नई ऊर्जा और नया उत्साह लेकर आए, हम एक स्वस्थ भारत का निर्माण कर सकें, जहां कोई छोटा-बड़ा न हो, जहां ऊंच-नीच और छुआछूत जैसी कुरीतियां न हो। सबको आगे बढ़ने और उन्नति करने के समान अवसर प्राप्त हों। महिलाएं सुरक्षित हों, पुरुषों में उनके प्रति सम्मान की भावना हो। परिवार की अवधारणा को और अधिक मजबूत किया जाए, जिससे बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक अपने आपको सुरक्षित महसूस करें।
- सरिता सुराणा
फीचर एडिटर
डेली शुभ लाभ
हैदराबाद
01.01.2020
बुधवार
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