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Showing posts from July, 2020

मुक्तक काव्य

मुक्तक ****** मुक्तक काव्य या कविता का वह प्रकार है जिसमें प्रबन्धकीयता न हो। इसमें एक छन्द में कथित बात का दूसरे छन्द में कही गयी बात से कोई सम्बन्ध या तारतम्य होना आवश्यक नहीं है। कबीरदास जी एवं रहीम के दोहे; मीराबाई के पद्य आदि सब मुक्तक रचनाएं हैं। हिन्दी साहित्य के रीतिकाल में अधिकांश मुक्तक काव्यों की रचना हुई। मुक्तक शब्द का अर्थ है ‘अपने आप में सम्पूर्ण’ अथवा ‘अन्य निरपेक्ष वस्तु’ होना। अत: मुक्तक काव्य की वह विधा है जिसमें कथा का कोई पूर्वापर संबंध नहीं होता। प्रत्येक छंद अपने आप में पूर्णत: स्वतंत्र और सम्पूर्ण अर्थ देने वाला होता है। संस्कृत काव्य परम्परा में मुक्तक शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम आनंदवर्धन ने  किया। ऐसा नहीं माना जा सकता कि काव्य की इस दिशा का ज्ञान उनसे पूर्व किसी को नहीं था। आचार्य दण्डी मुक्तक नाम से न सही पर अनिबद्ध काव्य के रूप में इससे परिचित थे।  ‘अग्निपुराण’ में मुक्तक को परिभाषित करते हुए कहा गया कि "मुक्तकं श्लोक एवैकश्चमत्कारक्षम: सताम्”। अर्थात चमत्कार की क्षमता रखने वाले एक ही श्लोक को मुक्तक कहते हैं। राजशेखर ने भी मुक्तक नाम से ही चर्चा की है।आ

छंदबद्ध रचनाओं में मात्राभार की गणना

छंदबद्ध रचना में मात्राभार की गणना  ***************************** छंदबद्ध रचना के लिये मात्राभार की गणना का ज्ञान आवश्यक है। मात्राभार दो प्रकार का होता है– वर्णिक भार और वाचिक भार। वर्णिक भार में प्रत्येक वर्ण का भार अलग-अलग यथावत लिया जाता है जैसे– विकल का वर्णिक भार = 111 या ललल जबकि वाचिक भार में उच्चारण के अनुरूप वर्णों को मिलाकर भार की गणना की जाती है जैसे विकल का उच्चारण वि कल है, विक ल नहीं, इसलिए विकल का वाचिक भार है – 12 या लगा। वर्णिक भार की गणना करने के लिए कुछ निश्चित नियम हैं। वर्णिक भार की गणना (1) ह्रस्व स्वरों की मात्रा 1 होती है जिसे लघु कहते हैं, जैसे - अ, इ, उ, ऋ की मात्रा 1 है। लघु को 1 या । या ल से व्यक्त किया जाता है। (2) दीर्घ स्वरों की मात्रा 2 होती है जिसे गुरु कहते हैं, जैसे-आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्रा 2 है। गुरु को 2 या S या गा से व्यक्त किया जाता है। (3) व्यंजनों की मात्रा 1 होती है , जैसे -क,ख,ग,घ / च,छ,ज,झ / ट,ठ,ड,ढ,ण / त,थ,द,ध,न / प,फ,ब,भ,म /य,र,ल,व,श,ष,स,ह। वास्तव में व्यंजन का उच्चारण स्वर के साथ ही संभव है, इसलिए उसी रूप में यहाँ लिखा गया है। अन्यथा

वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार सरिता सुराणा का नाम द ब्रिटिश वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज

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वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार सरिता सुराणा का नाम 'द ब्रिटिश वर्ल्ड रिकॉर्ड' में दर्ज 13 Jul, 2020 11:35 IST | Sakshi पत्रकार और लेखक सरिता सुराणा (फाइल फोटो) 'द ब्रिटिश वर्ल्ड रिकॉर्ड' में सरिता सुराणा का नाम दर्ज श्री महाप्रज्ञ जी के जीवन पर कविताओं के संकलन हैदराबाद :  तेरापंथ धर्मसंघ के दशमाचार्य आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के जन्म शताब्दी वर्ष (1920-2020) के उपलक्ष्य में अणुव्रतसेवी डॉ. ललिता जोगड़ व उनकी टीम के द्वारा आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के जीवन पर आधारित 1121 लोगों द्वारा लिखित कविताओं के संकलन 'महाप्रज्ञ' को द ब्रिटिश वर्ल्ड रिकॉर्ड, लंदन में रिकॉर्ड के लिए भेजा गया। इसके साथ ही इसे गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, सुप्रीम वर्ल्ड रिकॉर्ड, एशियन वर्ल्ड रिकॉर्ड, इंडियन स्टार वर्ल्ड रिकॉर्ड आदि 27 राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं के वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी शामिल किया गया है। यहां जारी विज्ञप्ति के अनुसार, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में लोक महर्षि महाप्रज्ञ जी का जन्म शताब्दी वर्ष 'ज्ञान चेतना वर्ष' के रूप में

वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार सरिता सुराणा का नाम द ब्रिटिश वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज

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सरिता सुराणा का नाम द ब्रिटिश वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज July 12, 2020 • शब्द प्रवाह समाचार • समाचार तेरापंथ धर्मसंघ के दशमाचार्य आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के जन्म शताब्दी वर्ष (1920-2020) के उपलक्ष्य में अणुव्रतसेवी डॉ. ललिता जोगड़ व उनकी टीम के द्वारा आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के जीवन पर आधारित 1121 लोगों द्वारा लिखित कविताओं के संकलन 'महाप्रज्ञ' को द ब्रिटिश वर्ल्ड रिकॉर्ड, लंदन में रिकॉर्ड के लिए भेजा गया। इसके साथ ही इसे गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, सुप्रीम वर्ल्ड रिकॉर्ड, एशियन वर्ल्ड रिकॉर्ड, इंडियन स्टार वर्ल्ड रिकॉर्ड आदि 27 राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं के वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी शामिल किया गया है। यह समस्त जैन समाज के लिए बहुत ही हर्ष का विषय है। अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में लोक महर्षि महाप्रज्ञ जी का जन्म शताब्दी वर्ष 'ज्ञान चेतना वर्ष' के रूप में मनाया गया। इसी शृंखला में यह प्रयास भी एक ऐतिहासिक कड़ी के रूप में जुड़ गया। इस संकलन में सरिता सुराणा की कविता 'महाप्रज्ञ ग़ौरव गाथा' के चयनित होने पर इसके संपादक

दोहे में मात्राओं की गणना और दोहे के प्रकार

दोहे में मात्राओं की गिनती और दोहे के प्रकार-  जैसे गजल में बहर होती है वैसे ही दोहों के भी 23 प्रकार हैं। एक दोहे में कितनी गुरु और कितनी लघु मात्राएं हैं उन्‍हीं की गणना को विभिन्‍न प्रकारों में बाँटा गया है। जो निम्‍न प्रकार है –  १. भ्रामर २२ ४ २६ ४८ २. सुभ्रामर २१ ६ २७ ४८ ३. शरभ २० ८ २८ ४८ ४. श्येन १९ १० २९ ४८ ५. मंडूक १८ १२ ३० ४८ ६. मर्कट १७ १४ ३१ ४८ ७. करभ १६ १६ ३२ ४८ ८. नर १५ १८ ३३ ४८ ९. हंस १४ २० ३४ ४८ १०. गयंद १३ २२ ३५ ४८ ११. पयोधर १२ २४ ३६ ४८ १२. बल ११ २६ ३८ ४८ १३. पान १० २८ ३८ ४८ १४. त्रिकल ९ ३० ३९ ४८ १५. कच्छप ८ ३२ ४० ४८ १६. मच्छ ७ ३४ ४२ ४८ १७. शार्दूल ६ ३६ ४४ ४८ १८. अहिवर ५ ३८ ४३ ४८ १९. व्याल ४ ४० ४४ ४८ २०. विडाल ३ ४२ ४५ ४८ २१. श्वान २ ४४ ४६ ४८ २२. उदर १ ४६ ४७ ४८ २३. सर्प ० ४८ ४८ ४८ दोहा छंद के अतिरिक्‍त रोला, सोरठा और कुण्‍डली के बारे में भी जानिए-  रोला – यह भी दोहे की तरह ही 24-24 मात्राओं का छंद होता है। इसमें दोहे के विपरीत 11/13 की यति होती है। अर्थात प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 मात्राएं तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएं होती हैं। दोहे में अन्‍त में गुरु

हिन्दी साहित्य में छंदों का महत्व और उपयोगिता

हिन्दी साहित्य में छंदबद्ध रचनाओं का अपना विशिष्ट स्थान है। आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक छन्दों का महत्व और उपयोगिता वैसे की वैसे ही बनी हुई है। आइए जानते हैं छंद रचना के बारे में महत्वपूर्ण बातें- हिन्दी में  छन्द  काव्य-शास्त्र के नियमानुसार जिस कविता या काव्य में मात्रा, वर्ण, गण, यति, लय आदि का विचार करके शब्द-योजना की जाती है, उसे छन्द कहते हैं | काव्य में छन्द के माध्यम से कम शब्दों में अधिकाधिक भावों की अभिव्यक्ति हो जाती है। लय, यति, गति, वर्ण आदि से बंधी रचना को छन्द कहते हैं | छन्द के निम्नलिखित अंग होते हैं  गति - छन्द को एक प्रवाह में पढ़ा जाता है,उस प्रवाह को गति कहते हैं। यति - पद्य पाठ करते समय जहाँ  कुछ क्षण रुका  जाता है, उसे यति कहते हैं। तुक - पद के चरणों के अंत में समान स्वरों के प्रयोग को तुक कहा जाता है। पद्य प्रायः तुकान्त होते हैं। मात्रा - वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं। मात्रा दो प्रकार की होती है-लघु और गुरु।  ह्रस्व उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा लघु होती है तथा दीर्घ उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा गुरु होती है।  लघुमात्रा का मान 1 होता

डेली शुभ लाभ में प्रकाशित गोष्ठी की रिपोर्ट

https://www.facebook.com/1660993551/posts/3124506294270891/?substory_index=63

साक्षी समाचार में प्रकाशित न्यूज़

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सूत्रधार साहित्यिक संस्था का ऑनलाइन काव्य गोष्ठी संपन्न, इन कवियों ने किया रचनाओं का पाठ .''https://hindi.sakshi.com/news/telangana/online-poetry-conference-sutradhar-organized-online-poetry-conference-85111 कवियों ने किया रचनाओं का पाठ 28 Jun, 2020 19:08 IST | Sakshi ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में रचना पाठ करते हुए कवि व लेखक सूत्रधार साहित्यिक संस्था की ओर से ऑनलाइन काव्य गोष्ठी कोरोना के बढ़ते प्रभाव के कारण हम अभी भी घरों में बंद हैं सामाजिक दायित्व का निर्वहन करते हुए काव्य गोष्ठी हैदराबाद : सूत्रधार साहित्यिक संस्था की ओर से द्वितीय ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन शनिवार को किया गया। आज जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार संस्था की संस्थापिका सरिता सुराणा ने बताया कि कोरोना महामारी के बढ़ते प्रभाव के कारण हम अभी भी घरों में बंद हैं और समूह में एकत्रित होकर कोई सामूहिक गतिविधि नहीं कर सकते। इसलिए अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन करते हुए संस्था की ओर से ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संस्था की स्थापना का उद्देश्य है, नवोदित रचनाकारों को एक मंच प्रदान करना, जिससे वे अपनी रचनात्म

दोहे के 23 प्रकार

दोहे में मात्राओं की गिनती और दोहे के प्रकार-  जैसे गजल में बहर होती है वैसे ही दोहों के भी 23 प्रकार हैं। एक दोहे में कितनी गुरु और कितनी लघु मात्राएं हैं उन्‍हीं की गणना को विभिन्‍न प्रकारों में बाँटा गया है। जो निम्‍न प्रकार है –  १. भ्रामर २२ ४ २६ ४८ २. सुभ्रामर २१ ६ २७ ४८ ३. शरभ २० ८ २८ ४८ ४. श्येन १९ १० २९ ४८ ५. मंडूक १८ १२ ३० ४८ ६. मर्कट १७ १४ ३१ ४८ ७. करभ १६ १६ ३२ ४८ ८. नर १५ १८ ३३ ४८ ९. हंस १४ २० ३४ ४८ १०. गयंद १३ २२ ३५ ४८ ११. पयोधर १२ २४ ३६ ४८ १२. बल ११ २६ ३८ ४८ १३. पान १० २८ ३८ ४८ १४. त्रिकल ९ ३० ३९ ४८ १५. कच्छप ८ ३२ ४० ४८ १६. मच्छ ७ ३४ ४२ ४८ १७. शार्दूल ६ ३६ ४४ ४८ १८. अहिवर ५ ३८ ४३ ४८ १९. व्याल ४ ४० ४४ ४८ २०. विडाल ३ ४२ ४५ ४८ २१. श्वान २ ४४ ४६ ४८ २२. उदर १ ४६ ४७ ४८ २३. सर्प ० ४८ ४८ ४८ दोहा छंद के अतिरिक्‍त रोला, सोरठा और कुण्‍डली के बारे में भी जानिए-  रोला – यह भी दोहे की तरह ही 24-24 मात्राओं का छंद होता है। इसमें दोहे के विपरीत 11/13 की यति होती है। अर्थात प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 मात्राएं तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएं होती हैं। दोहे में अन्‍त में गुरु

दोहा छंद के बारे में

दोहा छंद दोहा एक ऐसा छंद है जो शब्दों की मात्राओं के अनुसार निर्धारित होता है। इसके दो पद होते हैं तथा प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं। पहले चरण को विषम चरण तथा दूसरे चरण को सम चरण कहा जाता है। विषम चरण की कुल मात्रा 13 होती है तथा सम चरण की कुल मात्रा 11 होती है अर्थात दोहे का एक पद 13-11 की यति पर होता है, यति का अर्थ है विश्राम। यानि भले ही पद-वाक्य को न तोड़ा जाय किन्तु पद को पढ़ने में अपने आप एक विराम बन जाता है। दोहा छंद मात्रा के हिसाब से 13-11 की यति पर निर्भर न कर शब्द-संयोजन हेतु विशिष्ट विन्यास पर भी निर्भर करता है, बल्कि दोहा छंद ही क्यों हर मात्रिक छंद के लिए विशेष शाब्दिक विन्यास का प्रावधान होता है। यह अवश्य है कि दोहा का प्रारम्भ यानि कि विषम चरण का प्रारम्भ ऐसे शब्द से नहीं होता जो या तो जगण (लघु गुरु लघु या ।ऽ। या 121) हो या उसका विन्यास जगणात्मक हो। अलबत्ता, देवसूचक संज्ञाएँ जिनका उक्त दोहे के माध्यम में बखान हो, इस नियम से परे हुआ करती हैं। जैसे, गणेश या महेश आदि शब्द। आइए जानते हैं कि दोहे के मूलभूत नियम क्या हैं- 1. दोहे का आदि चरण यानि विषम चरण विषम शब्दों से यानि

हिन्दी साहित्य में छंदों की जानकारी

छन्द रचना के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी हिन्दी में  छन्द  काव्य-शास्त्र के नियमानुसार जिस कविता या काव्य में मात्रा, वर्ण, गण, यति, लय आदि का विचार करके शब्द-योजना की जाती है, उसे छन्द कहते हैं | काव्य में छन्द के माध्यम से कम शब्दों में अधिकाधिक भावों की अभिव्यक्ति हो जाती है। लय, यति, गति, वर्ण आदि से बंधी रचना को छन्द कहते हैं | छन्द के निम्नलिखित अंग होते हैं  गति - छन्द को एक प्रवाह में पढ़ा जाता है,उस प्रवाह को गति कहते हैं। यति - पद्य पाठ करते समय जहाँ  कुछ क्षण रुका  जाता है, उसे यति कहते हैं। तुक - पद के चरणों के अंत में समान स्वरों के प्रयोग को तुक कहा जाता है। पद्य प्रायः तुकान्त होते हैं। मात्रा - वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं। मात्रा दो प्रकार की होती है-लघु और गुरु।  ह्रस्व उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा लघु होती है तथा दीर्घ उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा गुरु होती है।  लघुमात्रा का मान 1 होता है और उसे खड़ी पाई (।) चिह्न से प्रदर्शित किया जाता है।  इसी प्रकार गुरु मात्रा का मान मान 2 होता है और उसे (ऽ) चिह्न से प्रदर्शित किया जाता है। गण - मात्राओं