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कवियों ने किया रचनाओं का पाठ

सूत्रधार साहित्यिक संस्था की ओर से ऑनलाइन काव्य गोष्ठी
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सामाजिक दायित्व का निर्वहन करते हुए काव्य गोष्ठी
गोष्ठी में उपस्थित युवा रचनाकारों और वरिष्ठ साहित्यकारों ने अपने काव्य पाठ के द्वारा कवि सम्मेलन जैसा समां बांध दिया। आर्या झा ने 'बेवफा तुम नहीं' रचना पढ़ी तो नेहा सुराणा भंडारी ने 'वो पूछते हैं मेरी पहचान मुझसे' और 'बादल ऐ बादल! तूं कहां-कहां भटकता है' कविताएं पढ़ी।
मंजुला दूसी ने स्त्रियों के मन की पीड़ा को कुछ इस तरह शब्दों में व्यक्त किया- 'काश कि मेरे जिस्म से इतर भी तुम देख पाते'। मंच के सबसे युवा रचनाकार रमाकांत श्रीवास ने अपने भावों का इजहार कुछ ऐसे किया- 'इशारों से तूने मुझको क्या कह दिया'।
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बैंगलोर से इस बार अमृता श्रीवास्तव जी ने गोष्ठी में अपनी सहभागिता निभाते हुए 'सावन इस बार कुछ ऐसे आना तुम' कविता का पाठ किया। पेशे से वकील होते हुए भी वे हिन्दी साहित्य में रुचि रखती हैं। नगर की वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती ज्योति नारायण ने वर्षा ऋतु पर 'आज जो कोहरा घना है' रचना प्रस्तुत की। श्रीया धपोला ने बाल मजदूरी पर अपनी रचना 'पर कतर दिए उस नन्हीं चिड़िया के जिम्मेदारियों ने' पढ़कर श्रोताओं की वाहवाही बटोरी। प्रदीप देवीशरण भट्ट जी ने 'हम ठहरे खाकी वाले, हर मुश्किल में चल जाते हैं' पर अपनी रचना प्रस्तुत की।
शिल्पी भटनागर ने भी बारिश पर अपनी कविता का पाठ किया। वरिष्ठ साहित्यकार एवं नाटककार सुहास जी भटनागर ने संवाद शैली में अपनी नज्म 'ये जो अल्फाज हैं, अक्सर अपना किरदार ही भूल जाते हैं' और 'मुझे आज भी याद है वो बचपन की गुड़िया' रचना अपने विशिष्ट अंदाज में प्रस्तुत की। सरिता सुराणा ने 'मौसम की पहली बारिश' नामक कविता का पाठ किया।
अन्त में आदरणीय सुरेश जी चौधरी ने अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए अपनी एक रचना सावन पर प्रस्तुत की, बोल थे- 'काले मधुप-सा रसिया तूं और कारी बदरी भरी रात भी होगी, घटा सावन की होगी और मदमाती रिमझिम बरसात भी होगी'। साथ ही उन्होंने बाल साहित्य लेखन पर जोर दिया और सभी सदस्यों को इस पर लिखने के लिए प्रेरणा दी। उन्होंने बरखा आती, बरखा आती रचना का पाठ भी किया।
गोष्ठी के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, 'सूत्रधार साहित्यिक संस्था द्वारा आयोजित आज की द्वितीय काव्य गोष्ठी हर प्रकार से सफल रही, किसी भी गोष्ठी की सफलता का सबसे बड़ा मानक होता है सदस्यों की उसमें रुचि। अगर सहभागी सदस्यों को रुचि ही न रहे और वे केवल औपचारिकता वश बैठे रहें तो गोष्ठी कदापि सफल नहीं कही जाएगी।
आज सुहास जी जैसे वरिष्ठतम रचनाकार थे तो कई युवा चेहरे भी दिखे। कोलकाता साहित्य की उर्वरा भूमि रही है, यहाँ भरपूर मात्रा में युवा गोष्ठियों में भाग लेते हैं। उन्हें देख मन प्रसन्न हो जाता है, मैं अक्सर कहता हूँ, इन युवाओं को देख आश्वस्त हूँ कि हिंदी साहित्य का भविष्य मजबूत कंधों पर है, यूँ बंगाल गैर हिंदी प्रान्त कहा जाता है पर किसी भी हिंदी राज्य से ज्यादा सक्रियता यहाँ है। हैदराबाद एक विशुद्ध अहिन्दीभाषी क्षेत्र है, यहाँ हिंदी के प्रति समर्पित युवाओं को देख हमें गर्व होना चाहिए। संस्थापिका के धन्यवाद ज्ञापन के साथ गोष्ठी सम्पन्न हुई।
- सरिता सुराणा
संस्थापिका
सूत्रधार साहित्यिक संस्था
हैदराबाद
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