कुर्सी  के लिए खत्म हुआ हाई वोल्टेज ड्रामा
महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू

महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन के लिए राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी की सभी कोशिशें विफल हो गईं, इसलिए उन्होंने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की थी, जिसे कैबिनेट ने अपनी मंजूरी दे दी और इसके बाद राष्ट्रपति ने भी इस पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी। इससे नाराज़ शिवसेना ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

क्या है सम्पूर्ण घटनाक्रम
महाराष्ट्र में आम चुनाव सम्पन्न होने के 18 दिन बाद भी जब कोई राजनीतिक दल सरकार बनाने का दावा पेश नहीं कर सका तो राज्यपाल ने सबसे पहले बीजेपी को, फिर शिवसेना को और अंत में राकांपा को सरकार गठन के लिए अपना संख्या बल बताने को कहा था। जब इन तीनों में से कोई भी अपना बहुमत सिद्ध नहीं कर पाया तो राज्यपाल ने केन्द्र सरकार से कहा कि कोई भी दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है, इसलिए राष्ट्रपति शासन ही एकमात्र विकल्प बचा है।

फैसले का विरोध
राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने के बाद राकांपा और कांग्रेस ने बैठक की और कहा कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना लोकतंत्र का मज़ाक उड़ाना है। दोनों ही पार्टियों ने कहा कि हम सभी बिंदुओं पर स्थिति स्पष्ट होने के बाद इस पर आगे बात करेंगे।
शरद पवार ने कहा कि हम किसी भी सूरत में महाराष्ट्र को दोबारा चुनाव में नहीं जाने देंगे। 

 भाजपा की कोशिश जारी
भाजपा नेता नारायण राणे अब भी सरकार गठन की कोशिशों में लगे हुए हैं। उनका कहना है कि वे सरकार गठन के लिए आवश्यक बहुमत अर्थात 145 विधायकों का समर्थन जुटाने में लगे हुए हैं। क्योंकि बीजेपी के पास 105 विधायक ही हैं और बहुमत सिद्ध करने के लिए अगर वह निर्दलीय विधायकों का समर्थन लेती है तो भी संख्या पूरी नहीं होती है। क्योंकि निर्दलीय विधायक सिर्फ 7 ही हैं।

शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस
अगर सरकार गठन के लिए ये तीनों दल मिलते हैं तो शिवसेना के 56, राकांपा के 54 और कांग्रेस के 44 विधायक मिलकर बहुमत का आंकड़ा आसानी से पार कर सकते हैं लेकिन शिवसेना की लाख कोशिशों के बावजूद न तो राकांपा ने और न ही कांग्रेस ने उसे अपना समर्थन पत्र दिया। क्योंकि दोनों ही दल सशर्त समर्थन देने की बात कर रहे हैं।

क्या है दोनों दलों की शर्तें
राकांपा-कांग्रेस की कान्फ्रेंस में शरद पवार ने कहा- 'पहले हम गठबंधन के दलों के बीच सभी बिंदुओं पर स्थिति स्पष्ट करेंगे और उसके बाद शिवसेना से भी बात की जाएगी। उसके बाद ही सरकार बनाने के बारे में आगे कोई फैसला लिया जाएगा।
 जहां कांग्रेस शिवसेना से हिन्दुत्व का एजेंडा पूर्ण रूप से छोड़ने के लिए कह रही है तो राकांपा ढाई साल तक अपना मुख्यमंत्री बनाने की शर्त रख रही है। लब्बोलुआब ये कि शिवसेना अपने ही बिछाए जाल में बुरी तरह फंस गई है। उसने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि उसका पाला राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ियों- शरद पवार और सोनिया गांधी से पड़ेगा। उसने तो सोचा था कि ये दोनों दल उसे आसानी से सरकार गठन के लिए समर्थन दे देंगे और वे आराम से 5 साल तक मुख्यमंत्री पद की शोभा बढ़ाएंगे। 

 क्या कहते हैं उद्धव ठाकरे   
  
उद्धव ठाकरे का कहना है कि 'जब बीजेपी ने सरकार बनाने से इन्कार कर दिया तो हमें सोमवार शाम 7.30 तक सरकार बनाने को लेकर अपनी इच्छा जाहिर करने के लिए कहा गया। हमने और 48 घंटे का समय मांगा था लेकिन हमें यह समय नहीं दिया गया। उद्धव ठाकरे का कहना है कि उनका सरकार बनाने का दावा अभी भी कायम है। महाराष्ट्र में सरकार बनाना मज़ाक की बात नहीं है। जब भिन्न विचारधारा के मुद्दे पर दो या तीन दल सरकार बनाना चाहते हैं तो उस पर चर्चा जरूरी होती है।  राकांपा ने खुद कहा कि हमने संपर्क किया है। भाजपा कहती है कि हमारे पास समय नहीं था। हमारे पास समय था लेकिन जिस तरह से हमसे बातचीत हो रही थी, वह हमें पसंद नहीं था।'
उन्होंने आगे कहा- 'माननीय राज्यपाल महोदय ने 6 महीने दिए हैं। मैं तो लोकसभा के पहले भी उनसे अलग हो रहा था, वे लोग सामने से आए थे। जो खत्म किया है, वह भाजपा ने किया है और जो बातचीत हुई थी हम लोगों के बीच, उस पर अमल करो।'

कुर्सी के खेल में जनमत की उपेक्षा
महाराष्ट्र में लम्बे समय तक चले कुर्सी के खेल में जनमत की उपेक्षा की गई। जो शिवसेना पूरे प्रदेश में सिर्फ 56 सीटों पर विजयी हुई थी, वह अपनी पार्टी के मुख्यमंत्री के सपने देख रही थी। यह उद्धव ठाकरे का पुत्र-प्रेम ही उन्हें ले डूबा। अब उनकी स्थिति 'धोबी का कुत्ता न घर का रहा न घाट का' वाली हो गई है। 
ऐसी स्थिति आजकल प्राय: हरेक राज्य में हो रही है, इसलिए अब आवश्यक हो गया है कि राजनीतिक दल गठबंधन बनाने से पहले ही अपनी समस्त शर्तों के बारे में लिखित रूप से जनता को जानकारी दें, ताकि चुनावों के बाद अगर वे अपने वादे से मुकरते हैं तो जनता उन्हें जता सके। चुनावों से पहले जनता के साथ किए गए वादों को पूरा करना तो दूर, यहां पर तो कुर्सी के इस मायाजाल में आम जनता पिस रही है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि नेताओं को येन-केन प्रकारेण सत्ता पर कब्जा जमाने के अलावा और कोई उद्देश्य नहीं है। 
-सरिता सुराणा
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखिका
हैदराबाद
                     ये आलेख हाल ही में की समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ है जैसे- नवीन कदम, वूमैन एक्सप्रेस, साक्षी समाचार, शब्द प्रवाह ई-मैग्जीन आदि।

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