दोहे के 23 प्रकार
दोहे में मात्राओं की गिनती और दोहे के प्रकार-
जैसे गजल में बहर होती है वैसे ही दोहों के भी 23 प्रकार हैं। एक दोहे में कितनी गुरु और कितनी लघु मात्राएं हैं उन्हीं की गणना को विभिन्न प्रकारों में बाँटा गया है। जो निम्न प्रकार है –
१. भ्रामर २२ ४ २६ ४८
२. सुभ्रामर २१ ६ २७ ४८
३. शरभ २० ८ २८ ४८
४. श्येन १९ १० २९ ४८
५. मंडूक १८ १२ ३० ४८
६. मर्कट १७ १४ ३१ ४८
७. करभ १६ १६ ३२ ४८
८. नर १५ १८ ३३ ४८
९. हंस १४ २० ३४ ४८
१०. गयंद १३ २२ ३५ ४८
११. पयोधर १२ २४ ३६ ४८
१२. बल ११ २६ ३८ ४८
१३. पान १० २८ ३८ ४८
१४. त्रिकल ९ ३० ३९ ४८
१५. कच्छप ८ ३२ ४० ४८
१६. मच्छ ७ ३४ ४२ ४८
१७. शार्दूल ६ ३६ ४४ ४८
१८. अहिवर ५ ३८ ४३ ४८
१९. व्याल ४ ४० ४४ ४८
२०. विडाल ३ ४२ ४५ ४८
२१. श्वान २ ४४ ४६ ४८
२२. उदर १ ४६ ४७ ४८
२३. सर्प ० ४८ ४८ ४८
दोहा छंद के अतिरिक्त रोला, सोरठा और कुण्डली के बारे में भी जानिए-
रोला – यह भी दोहे की तरह ही 24-24 मात्राओं का छंद होता है। इसमें दोहे के विपरीत 11/13 की यति होती है। अर्थात प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 मात्राएं तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएं होती हैं। दोहे में अन्त में गुरु लघु मात्रा होती है जबकि रोला में दो गुरु होते हैं। लेकिन कभी-कभी दो लघु भी होते हैं। (आचार्य जी मैंने एक पुस्तक में पढ़ा है कि रोला के अन्त में दो लघु होते हैं, इसको स्पष्ट करें।)
कुण्डली – कुण्डली में छ पद/चरण होते हैं अर्थात तीन छंद। जिनमें एक दोहा और दो रोला के छंद होते हैं। प्रथम छंद में दोहा होता है और दूसरे व तीसरे छंद में रोला होता है। लेकिन दोहे और रोले को जोड़ने के लिए दोहे के चतुर्थ पद को पुन: रोले के प्रथम पद में लिखते हैं। कुण्डली के पांचवे पद में कवि का नाम लिखने की प्रथा है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है तथा अन्तिम पद का शब्द और दोहे का प्रथम या द्वितीय शब्द भी समान होना चाहिए। जैसे साँप जब कुण्डली मारे बैठा होता है तब उसकी पूँछ और मुँह एक समान दिखायी देते हैं।
उदाहरण –
लोकतन्त्र की गूँज है, लोक मिले ना खोज
राजतन्त्र ही रह गया, वोट बिके हैं रोज
वोट बिके हैं रोज, देश की चिन्ता किसको
भाषण पढ़ते आज, बोलते नेता इनको
हाथ हिलाते देख, यह मनसा राजतन्त्र की
लोक कहाँ है सोच, हार है लोकतन्त्र की।
दौलत पाय न कीजिये, सपने में अभिमान
चंचल जल दिन चारि को, ठाऊँ न रहत निदान
ठाऊँ न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै
मीठे बचन सुने, बिनय सब ही की कीजैै।
कह गिरिधर कविराय, अरे! यह सब घट तौलत
पाहून निशि-दिन चारि, रहत सब ही के दौलत।
सोरठा – सोरठा में भी 11/13 पर यति। लेकिन पदांत बंधन विषम चरण अर्थात प्रथम और तृतीय चरण में होता है। दोहे को उल्टा करने पर सोरठा बनता है।
जैसे –
दोहा: काल ग्रन्थ का पृष्ठ नव, दे सुख-यश-उत्कर्ष
करनी के हस्ताक्षर, अंकित करें सहर्ष।
सोरठा- दे सुख-यश-उत्कर्ष, काल-ग्रन्थ का पृष्ठ नव
अंकित करें सहर्ष, करनी के हस्ताक्षर।
सोरठा- जो काबिल फनकार, जो अच्छे इन्सान
है उनकी दरकार, ऊपरवाले तुझे क्यों?
दोहा- जो अच्छे इन्सान है, जो काबिल फनकार
ऊपरवाले तुझे क्यों, है उनकी दरकार?
संकलनकर्त्री: सरिता सुराणा
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