राजस्थान दिवस पर एक संकल्प 'आओ चलें जड़ों की ओर'
राजस्थान दिवस पर एक संकल्प
'आओ चलें जड़ों की ओर'
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आज राजस्थान दिवस है। क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान हमारे देश का सबसे बड़ा राज्य है और इसकी जनसंख्या लगभग 7.5 करोड़ है। साथ ही लाखों मारवाड़ी भाई व्यापार के सिलसिले में पूरे देश में बसे हुए हैं। किसी भी प्रदेश की कुछ खास विशेषताएं होती हैं। राजस्थान एक ओर जहां थार के रेगिस्तान के लिए प्रसिद्ध है, वहीं शिल्पकला के अद्वितीय नमूने अजेय दुर्गों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां के रणबांकुरों की शौर्य गाथाएं इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। यहां के महाकवियों ने अपने राजा-महाराजाओं की वीर गाथाओं को महाकाव्यों में गाया है। यहां की समृद्ध संस्कृति, परम्परा और मेहमानवाजी का, यहां की लोक कलाओं और लोक गीतों का बखान करने के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं है। अपनी जन्मभूमि, अपनी मातृभूमि के मैं जितने गुण गाऊं, उतने कम है।
इन सब विशेषताओं के अलावा अगर किसी प्रदेश की अपनी कोई विशेष पहचान होती है तो वह है वहां बोली जाने वाली भाषा। राजस्थान में मूल रूप से राजस्थानी भाषा ही बोली जाती है लेकिन क्षेत्रवार उसके बोलने का लहजा अलग-अलग है। प्रमुख रूप से यहां चार बोलियां बोली जाती हैं, वे हैं- मारवाड़ी, ढूंढाड़ी, मालवी और मेवाती। परन्तु दुख इस बात का है कि इतने बड़े प्रदेश की भाषा अब तक संविधान से मान्यता प्राप्त नहीं है। पूर्ववर्ती सरकारों ने अपने फायदे के लिए जहां मुट्ठी भर लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं यथा- कोंकणी, डोगरी, कश्मीरी, नेपाली आदि को तुरत-फुरत मान्यता प्रदान कर दी, वहीं इतने बड़े प्रदेश के करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा आज भी संवैधानिक मान्यता के लिए तरस रही है। अब समय आ गया है कि हम अपने अधिकार के लिए आवाज बुलंद करें और अपनी मातृभाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करवाकर उसका मान बढ़ाएं।
(क्रमशः)
- सरिता सुराणा
वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार
30.03.2020, सोमवार
'आओ चलें जड़ों की ओर'
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आज राजस्थान दिवस है। क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान हमारे देश का सबसे बड़ा राज्य है और इसकी जनसंख्या लगभग 7.5 करोड़ है। साथ ही लाखों मारवाड़ी भाई व्यापार के सिलसिले में पूरे देश में बसे हुए हैं। किसी भी प्रदेश की कुछ खास विशेषताएं होती हैं। राजस्थान एक ओर जहां थार के रेगिस्तान के लिए प्रसिद्ध है, वहीं शिल्पकला के अद्वितीय नमूने अजेय दुर्गों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां के रणबांकुरों की शौर्य गाथाएं इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। यहां के महाकवियों ने अपने राजा-महाराजाओं की वीर गाथाओं को महाकाव्यों में गाया है। यहां की समृद्ध संस्कृति, परम्परा और मेहमानवाजी का, यहां की लोक कलाओं और लोक गीतों का बखान करने के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं है। अपनी जन्मभूमि, अपनी मातृभूमि के मैं जितने गुण गाऊं, उतने कम है।
इन सब विशेषताओं के अलावा अगर किसी प्रदेश की अपनी कोई विशेष पहचान होती है तो वह है वहां बोली जाने वाली भाषा। राजस्थान में मूल रूप से राजस्थानी भाषा ही बोली जाती है लेकिन क्षेत्रवार उसके बोलने का लहजा अलग-अलग है। प्रमुख रूप से यहां चार बोलियां बोली जाती हैं, वे हैं- मारवाड़ी, ढूंढाड़ी, मालवी और मेवाती। परन्तु दुख इस बात का है कि इतने बड़े प्रदेश की भाषा अब तक संविधान से मान्यता प्राप्त नहीं है। पूर्ववर्ती सरकारों ने अपने फायदे के लिए जहां मुट्ठी भर लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं यथा- कोंकणी, डोगरी, कश्मीरी, नेपाली आदि को तुरत-फुरत मान्यता प्रदान कर दी, वहीं इतने बड़े प्रदेश के करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा आज भी संवैधानिक मान्यता के लिए तरस रही है। अब समय आ गया है कि हम अपने अधिकार के लिए आवाज बुलंद करें और अपनी मातृभाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करवाकर उसका मान बढ़ाएं।
(क्रमशः)
- सरिता सुराणा
वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार
30.03.2020, सोमवार
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