राजस्थान का प्रसिद्ध लोक उत्सव गणगौर

राजस्थान का प्रसिद्ध लोक उत्सव गणगौर
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गणगौर राजस्थान का एक प्रमुख लोक उत्सव है, जिसे सुहागन स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु एवं उत्तम स्वास्थ्य के लिए मनाती हैं।यह चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तीज को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने अखंड सुहाग के लिए और कुंवारी कन्याएं इच्छित वर की प्राप्ति के लिए गौर-ईसर अर्थात् शिव-पार्वती जी की पूजा करती हैं। गणगौर राजस्थान में आस्था, विश्वास और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा त्योहार है।
          यह होलिका दहन के दूसरे दिन से ही शुरू हो जाता है। यह चैत्र कृष्णा प्रतिपदा से लेकर चैत्र शुक्ला तृतीया तक चलने वाला उत्सव है। ऐसा माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं और आठ दिनों के बाद इसर जी उन्हें वापस ले जाने के लिए आते हैं। इससे पहले दूज को गणगौर की शाही सवारी निकाली जाती है, उन्हें तरह-तरह के पकवानों से 'सिंजारा' कराया जाता है। इसी दिन घर की बहन-बेटियों के भी सिंजारे कराए जाते हैं। उन्हें अपनी सामर्थ्य के अनुसार नए कपड़े, मिठाई और नकद उपहार दिए जाते हैं। तीज के दिन शहर में मेला लगता है। इसी दिन विवाहित महिलाएं अपने व्रत का उद्यापन भी करती हैं। पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ विधि-विधानपूर्वक गौर-इसर की शादी करवाई जाती है। अगर उस दिन मुहुर्त अच्छा होता है तो उसी दिन, नहीं तो अगले एक-दो दिन में गौर की विदाई की जाती है।
         इस त्योहार में गाए जाने वाले लोकगीत बहुत ही मधुर और कर्णप्रिय होते हैं। ये एक तरह से इस पर्व की आत्मा हैं। गणगौर पूजन में महिलाएं अपने लिए अखंड सौभाग्य, अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि तथा गणगौर से हर वर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं।
- सरिता सुराणा

  • 27.03.2020





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