दक्षिण भारत का प्रमुख पर्व है उगादि, जानें परंपरा व इतिहास
दक्षिण भारत का प्रमुख पर्व है उगादि
जानें परंपरा व इतिहास
24 Mar, 2020 12:00 IST|Sakshi

उगादी के दिन ही भगवान श्री राम का राज्याभिषेक हुआ था
इसी दिन ब्रह्मा जी ने ब्रह्मांड की रचना शुरु की थी
उगादी जो नूतन संवत्सर या युगादि के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण भारत का प्रमुख पर्व है। इसे कर्नाटक, आंध्र-प्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्यों में नववर्ष के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र माह की प्रतिपदा को मनाया जाता है। ग्रेगेरियन कैलेंडर के हिसाब से यह पर्व मार्च या अप्रैल में ही आता है। दक्षिण भारत में इस पर्व का बड़ा महत्व है क्योंकि वसंत के आगमन के साथ ही किसानों के लिए यह नयी फसल के आगमन की खुशी का पर्व भी होता है।
क्यों मनाते हैं उगादी
उगादी के पर्व को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक मान्यता के अनुसार गवान शिवजी ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया था कि संसार में कभी उनकी पूजा न हो, लेकिन आंध्र-प्रदेश में उगादी के अवसर पर ब्रह्मा जी की ही पूजा की जाती है क्योंकि इसी दिन ब्रह्मा जी ने ब्रह्मांड की रचना शुरु की थी। यही कारण है कि इस दिन को दक्षिण भारत में नववर्ष के रूप में मनाया जाता है।
पौराणिक मान्यताएं
इसके साथ ही पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु मत्स्य अवतार में अवतरित हुए थे। वहीं ऐसा भी माना जाता है कि उगादी के दिन ही भगवान श्री राम का राज्याभिषेक हुआ था। इसके साथ इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी।
नई फसल
यदि सामान्य परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो उगादी का यह त्योहार उस समय आता है, जब हमारे देश में वसंत ऋतु अपने चरम पर होती है और इस समय किसानों को नयी फसल भी मिलती है, क्योंकि हमारा देश कृषि प्रधान देश है, इसलिए प्राचीन समय से ही किसानों द्वारा इस पर्व को नई फसल के लिए ईश्वर को दिये जाने वाले धन्यवाद के रूप में मनाया जाता है।

दक्षिण भारत में ऐसे मनाते हैं उगादी
जिस दिन उत्तर भारत के लोग चैत्र नवरात्रि की करते हैं, घट स्थापना करते हैं, उसी दिन दक्षिण भारत के कर्नाटक, आंध्र-प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में उगादी का त्योहार मनाया जाता है। कई दिनों पहले से ही तेलुगु राज्यों में इसकी तैयारी शुरू हो जाती है। नए कपड़े खरीदे जाते हेैं, घर की साफ-सफाई की जाती है। वहीं उगादी के दिन सुबह-सवेरे उठकर घर के मुख्य द्वार पर आम के पत्तों की वंदनवार लगाई जाती है तो दूसरी ओर घर के सामने रंगोली भी सजाई जाती है।
बनाई जाती है पच्चड़ी
उगादी पर विशेष रूप से पच्चड़ी बनाई जाती है। पच्चड़ी नामक यह शरबत नई इमली, कच्चे आम, नारियल, नीम के फूल, गुड़ जैसी चीजों को मिलाकर मटके में बनाया जाता है।
यह पच्चड़ी लोग घर में पीते ही नहीं है बल्कि पड़ोस में, रिश्तेदारों व दोस्तों में बांटते भी है। इस दिन कर्नाटक में पच्चड़ी के अलावा एक और चीज बनाई व खायी जाती है जिसे बेवु-बेल्ला नाम से जाना जाता है। यह गुड़ और नीम के मिश्रण से बनती है। इस पर्व पर बनने वाली चीजें हमें इस बात का ज्ञान कराती है कि जीवन में हमें मिठास तथा कड़वाहट दोनों तरह के अनुभवों से गुजरना पड़ता है।
इस मीठे-कड़वे मिश्रण को खाते समय लोगों र्द्वारा निम्नलिखित संस्कृत श्लोक का उच्चारण किया जाता है-
“शतायुर्वज्रदेहाय सर्वसंपत्कराय च ।
सर्वारिष्टविनाशाय निम्बकं दलभक्षणम् ॥”
उपरोक्त श्लोक का अर्थ है– “वर्षों तक जीवित रहने, मजबूत और स्वस्थ शरीर की प्राप्ति के लिए एवं विभिन्न प्रकार के धन की प्राप्ति तथा सभी प्रकार की नकारात्मकता का नाश करने के लिए हमें नीम के पत्तों को इस दिन जरूर खाना चाहिए।”
व्यंजन
इसके साथ ही इस दिन घर में लोग पूरणपोली तथा लड्डू जैसे कई स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इस अवसर पर बोवत्तु या फिर पोलेलु नामक व्यंजन बनाया जाता है। इसी व्यंजन को तेलंगाना में बोरेलु नाम से जाना जाता है। यह एक प्रकार का पराठा होता है जिसे चने की दाल, गेहूं के आटे, गुड़ और हल्दी आदि को पानी की सहायता से गूंथकर देशी घी में तलकर बनाया जाता है। इसको पच्चड़ी के साथ खाया जाता है।
उगादी की पूजा विधि
दक्षिण भारत में उगादी के दिन पूजा-अर्चना करने की एक विशेष विधि का निर्वहन किया जाता है और माना जाता है कि इसका पालन करने से ईश्वर की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस दिन सुबह-सवेरे जागकर, नित्य कर्मों से निवृत्त होकर, शरीर पर बेसन तथा तेल का उबटन लगाकर नहाते हैं। इसके बाद हाथ में गंध, अक्षत, फूल और जल लेकर भगवान ब्रह्मा जी के मंत्रों का उच्चारण करके पूजा की जाती है।
इसके साथ ही यह भी माना जाता है कि इस दिन घर में रंगोली या स्वास्तिक का चिह्न बनाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही यह भी माना जाता है कि इस दिन सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर हल्दी या केसर से रंगे अक्षत से अष्टदल बनाकर उस पर ब्रह्मा जी की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करके ब्रह्मा जी की पूजा की जाए तो उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है।
उगादी का महत्व
उगादी का यह पर्व हमें प्रकृति के समीप ले जाने का कार्य करता है क्योंकि यदि इस त्योहार के दौरान पी जाने वाले पच्चड़ी नामक शरबत पर गौर करें तो यह शरीर के लिए काफी स्वास्थ्यवर्धक होती है। जो हमारे शरीर को मौसम में हुए परिवर्तन से लड़ने के लिए तैयार करती है और हमारे शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को भी बढ़ाती है। इसके साथ ही ऐसी मान्यता है कि इस दिन कोई नया काम शुरु करने पर सफलता अवश्य मिलती है। इसलिए उगादि के दिन दक्षिण भारतीय राज्यों में लोग दुकानों का उद्घाटन, भवन निर्माण का आरंभ आदि नये कार्यों की शुरुआत करते हैं।
उगादी का इतिहास
उगादी पर्व का इतिहास काफी प्राचीन है और इस त्योहार को कई शताब्दियों से दक्षिण भारत के राज्यों में मनाया जा रहा है। दक्षिण भारत में चंद्र पंचांग को मानने वाले लोगों द्वारा इसे नव वर्ष के रुप में मनाया जाता है। इतिहासकारों का मानना है कि इस पर्व की शुरुआत सम्राट शालिवाहन या जिन्हें गौतमीपुत्र शतकर्णी के नाम से भी जाना जाता है, उनके शासनकाल में हुई थी। इसके साथ ही इस पर्व के दौरान वसंत ऋतु अपने पूरे चरम पर होती है, जिससे मौसम काफी सुहावना रहता है। उगादी वह पर्व है जो हमें इस बात का एहसास दिलाता है कि हमें अतीत को पीछे छोड़कर आने वाले भविष्य पर ध्यान देना चाहिए और किसी तरह की असफलता से निराश नहीं होना चाहिए बल्कि सकारात्मकता के साथ नयी शुरुआत करनी चाहिए।
-सरिता सुराणा, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखिका हैदराबाद
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