गिरिजा कुमार माथुर का गीत- आज जीत की रात पहरुए! सावधान रहना
कुछ साहित्यिक रचनाएं ऐसी होती हैं जो वर्षों तक अपनी महत्ता कायम रखती हैं। आदरणीय गिरिजा कुमार माथुर का यह गीत भी उसी श्रेणी में आता है। हालांकि यह उन्होंने से
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लिखा था, लेकिन आज जब हमारा देश संक्रमण काल से गुजर रहा है तो इस गीत की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है।
आइए पढ़ते हैं इसे और एक जिम्मेदार नागरिक होने का कर्त्तव्य निभाने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हैं।
आज जीत की रात
पहरुए! सावधान रहना
*******************
- गिरिजा कुमार माथुर
खुले देश के द्वार
अचल दीपक समान रहना
प्रथम चरण है नये स्वर्ग का
है मंज़िल का छोर
इस जन-मंथन से उठ आई
पहली रत्न-हिलोर
अभी शेष है पूरी होना
जीवन-मुक्ता-डोर
क्योंकि नहीं मिट पाई दुख की
विगत साँवली कोर
ले युग की पतवार
बने अंबुधि समान रहना।
विषम शृंखलाएँ टूटी हैं
खुली समस्त दिशाएँ
आज प्रभंजन बनकर चलतीं
युग-बंदिनी हवाएँ
प्रश्नचिह्न बन खड़ी हो गयीं
यह सिमटी सीमाएँ
आज पुराने सिंहासन की
टूट रही प्रतिमाएँ
उठता है तूफान, इंदु! तुम
दीप्तिमान रहना।
ऊंची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है
शत्रु हट गया, लेकिन उसकी
छायाओं का डर है
शोषण से है मृत समाज
कमज़ोर हमारा घर है
किन्तु आ रहा नई ज़िन्दगी
यह विश्वास अमर है
जन-गंगा में ज्वार,
लहर तुम प्रवहमान रहना
पहरुए! सावधान रहना।
आज जीत की रात
पहरुए! सावधान रहना।
प्रस्तुति: सरिता सुराणा
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लिखा था, लेकिन आज जब हमारा देश संक्रमण काल से गुजर रहा है तो इस गीत की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है।
आइए पढ़ते हैं इसे और एक जिम्मेदार नागरिक होने का कर्त्तव्य निभाने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हैं।
आज जीत की रात
पहरुए! सावधान रहना
*******************
- गिरिजा कुमार माथुर
खुले देश के द्वार
अचल दीपक समान रहना
प्रथम चरण है नये स्वर्ग का
है मंज़िल का छोर
इस जन-मंथन से उठ आई
पहली रत्न-हिलोर
अभी शेष है पूरी होना
जीवन-मुक्ता-डोर
क्योंकि नहीं मिट पाई दुख की
विगत साँवली कोर
ले युग की पतवार
बने अंबुधि समान रहना।
विषम शृंखलाएँ टूटी हैं
खुली समस्त दिशाएँ
आज प्रभंजन बनकर चलतीं
युग-बंदिनी हवाएँ
प्रश्नचिह्न बन खड़ी हो गयीं
यह सिमटी सीमाएँ
आज पुराने सिंहासन की
टूट रही प्रतिमाएँ
उठता है तूफान, इंदु! तुम
दीप्तिमान रहना।
ऊंची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है
शत्रु हट गया, लेकिन उसकी
छायाओं का डर है
शोषण से है मृत समाज
कमज़ोर हमारा घर है
किन्तु आ रहा नई ज़िन्दगी
यह विश्वास अमर है
जन-गंगा में ज्वार,
लहर तुम प्रवहमान रहना
पहरुए! सावधान रहना।
आज जीत की रात
पहरुए! सावधान रहना।
प्रस्तुति: सरिता सुराणा
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