विश्व भाषा अकादमी भारत की तेलंगाना इकाई द्वारा आयोजित ऑनलाइन काव्य गोष्ठी
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विश्व भाषा अकादमी, भारत की तेलंगाना इकाई द्वारा बसन्तोत्सव काव्य गोष्ठी सम्पन्न
'बसन्तोत्सव' पर काव्य गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन
आनन्द और उल्लास मनुष्य के जीवन में आते हैं
हैदराबाद : विश्व भाषा अकादमी, भारत की तेलंगाना इकाई की ओर से 'बसन्तोत्सव' पर काव्य गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। इकाई अध्यक्ष सरिता सुराणा ने इस गोष्ठी की अध्यक्षता की। सर्वप्रथम अध्यक्ष ने सभी सहभागियों का स्वागत किया। इकाई महासचिव ज्योति नारायण की सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ।
तत्पश्चात् काव्य गोष्ठी को प्रारम्भ करते हुए गुजराती भाषा सलाहकार भावना पुरोहित ने अपनी रचना 'ऋतुओं में मैं बसन्त हूं, मधुमास में, ऋतुराज में मध्यम वातावरण' तो मराठी भाषा सलाहकार मीना खोंड ने 'पतझड़ हो गई ओझल, पल्लवित हुआ जीवन, रुत आई सुहानी' रचना का सुमधुर पाठ कर सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
इंसान के जीवन में ऋतुओं का महत्व
परामर्शदाता डॉ.आर सुमनलता ने ऋतुराज बसन्त के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की और साथ ही साथ षटरसों के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि इंसान के जीवन में वैसे तो सभी ऋतुओं का अपना-अपना महत्व है लेकिन बसन्त ऋतु के आगमन से जो आनन्द और उल्लास मनुष्य जीवन में आता है, वह अवर्णनीय है। उन्होंने अपनी रचना 'महाविलय से/नवजीवन की आशा जगाने/लायी है रंगों की पिचकारी/ मदन जनक की सखियां प्यारी' का बहुत ही सुन्दर ढंग से पाठ किया।
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'बीज वीज सब रस में भीगे, झूमे बसन्ती त्यौंहार'
कोषाध्यक्ष संगीता जी शर्मा ने 'बीज वीज सब रस में भीगे, झूमे बसन्ती त्यौंहार' सुनाकर सबको भावविभोर कर दिया। कार्यकारी संयोजिका सुनीता लुल्ला ने एक सुमधुर गीत 'ये हथेली प्रार्थना के गीत का उन्वान है, भोर का दर्शन यहीं पर और यह भगवान है' का सुन्दर पाठ करके कार्यक्रम में समां बांध दिया।
'लेता जब सूरज अंगड़ाई'
महासचिव ज्योति नारायण ने 'लेता जब सूरज अंगड़ाई, ऋतुराज बसन्त तब आता है/बंदी धूप खुल जाती है, उल्लास चहुं दिशि छाता है' रचना को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। उसके पश्चात् वरिष्ठ कवि एवं नाटककार परामर्शदाता सुहास भटनागर ने अपनी रचना 'सफरनामा मौसम का' प्रस्तुत की, जिसमें उन्होंने छहों ऋतुओं का बहुत ही सुन्दर और मनोरम चित्रण किया और ऋतुराज बसन्त का स्वागत कुछ इस तरह किया- 'प्रिय वसन्त! तुम आ ही गए हो तो स्वागत है तुम्हारा। मैं इस बार समझौता कर ही लेना चाहता हूं'। उनका प्रस्तुतिकरण लाजवाब था, सभी सदस्यों ने उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की।
'फूली सरसों खेत मुस्काया'
अंत में अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए सरिता सुराणा ने अपनी रचना 'फूली सरसों खेत मुस्काया/मेरे द्वारे फागुन आया/सखी बसन्त आया' का पाठ किया। सभी सदस्यों ने बसन्तोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित इस गोष्ठी की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की। ज्योति नारायण के धन्यवाद ज्ञापन के साथ बहुत ही उल्लासमय वातावरण में गोष्ठी सम्पन्न हुई।
- सरिता सुराणा
प्रदेशाध्यक्ष
तेलंगाना इकाई
विश्व भाषा अकादमी, भारत
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