कविता 'गुमान दौलत का' शब्द प्रवाह में प्रकाशित

 गुमान दौलत का

August 17, 2020 • ✍️सरिता सुराणा • कविता

✍️सरिता सुराणा
बड़ा गुमान था उसे
अपनी दौलत और शोहरत का
कमाई थी जो उसने
गरीबों का खून चूस-चूस कर
उनकी मजबूरियों का फायदा उठाकर
दस रुपए सैंकड़ा का 
ब्याज और पड़ ब्याज लेकर
फिर उसी दौलत से कमाई
शोहरत, समाजसेवी बनकर
जहां न जेब से पैसा लगता था
और न ही कुछ और
बस वीआईपी बनकर 
फीता काटना होता था
जगह-जगह होने वाले 
उद्घाटनों का
मगर कभी तो उसकी
किस्मत का भी
पटाक्षेप होना ही था
वह हुआ कोरोना की मार से
इस एक अदृश्य सूक्ष्म जीवाणु ने
पल भर में बदल दी
उसकी दुनिया
बहुत हाथ-पैर मारे उसने
अपनी पहुंच और 
ताकत के बल पर
बहुत दिखाया पैसे का जोर
मगर अफसोस!
नहीं खरीद सका वह 
जिन्दगी की सांसें
आखिर दगा दे गई 
उसे वह अपरिमित दौलत
छोड़ दिया अपनों ने ही साथ
अन्तिम समय में न ही मिला
दो गज कफ़न घर से 
और न ही किसी अपने का कांधा
आज इस अंतिम यात्रा पर
वह अकेला ही जा रहा था
न दौलत साथ थी और
न ही कोई रिश्तेदार
बस साथ था तो सिर्फ कोरोना
जिसने उसका घमंड 
चूर-चूर कर दिया था
उसे उसकी असली 
औकात दिखा दी थी।
*हैदराबाद
 

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