सूत्रधार साहित्यिक मंच द्वारा हरिवंशराय बच्चन के काव्य संसार पर परिचर्चा एवं काव्य गोष्ठी सम्पन्न

 

सूत्रधार और विश्व भाषा अकादमी की विशेष परिचर्चा एवं काव्य गोष्ठी सम्पन्न

23 November 2020 04:39 PM


हैदराबाद 23 नवम्बर 2020। सूत्रधार साहित्यिक संस्था हैदराबाद और विश्व भाषा अकादमी भारत की तेलंगाना इकाई के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को एक परिचर्चा और काव्य गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। आज यहां पर जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार संस्था की संस्थापिका सरिता सुराणा ने बताया कि यह मासिक गोष्ठी दो सत्रों में आयोजित की गई। इसमें हैदराबाद के साथ-साथ देश भर से कवि-कवयित्रियां भी शामिल हुए। इस गोष्ठी की अध्यक्षता हैदराबाद की अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वरिष्ठ कवयित्री ज्योति नारायण ने की। कटक, उड़ीसा से प्रसिद्ध कवयित्री रिमझिम झा और निम्बाहेड़ा, राजस्थान से उर्मिला पुरोहित ने विशेष अतिथि के रूप में गोष्ठी में भाग लिया। मंजुला दूसी की सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। तत्पश्चात् आयोजक ने सभी अतिथियों का स्वागत किया और संस्था के उद्देश्यों के बारे में जानकारी दी। प्रथम सत्र में हालावादी कवि हरिवंशराय बच्चन के काव्य संसार और समग्र साहित्य पर विस्तृत चर्चा की गई। सरिता सुराणा ने कहा कि प्रत्येक कवि का एक निजी वैशिष्ट्य होता है। कवि के काव्य का सागर-मंथन वास्तव में कवि का मनोमंथन है। जीवन और यौवन की हाला को अपने काव्य में उंडेलकर जीवन का यशोगान करने वाले कवि हरिवंशराय बच्चन की भावानुभूति यथार्थ की भावभूमि पर स्थित है, उनका काव्य जीवन से नि:सृत है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने छायावाद की आदर्शवादिता और प्रगतिवाद की वास्तविकता के संधियुग में कल्पना की वायवीय मृदु तारों की हृदय तंत्री का मोह छोड़ कर, जीवन सांसों की वीणा में आत्मानुभूति का स्वर भरकर छायावाद के विस्तृत प्रांगण में गीतों की सरिता प्रवाहित की।   

               बच्चन जी के साथ बिताए अमूल्य क्षणों को याद करते हुए सुनीता लुल्ला ने कहा कि वे भाग्यशाली हैं कि उन्होंने बच्चन जी का काव्य पाठ (मधुशाला) आमने-सामने सुना है। उन्हें अधिकांश मधुशाला याद है और उनकी बहुत-सी अन्य कविताएं भी। उनके निजी जीवन से जुड़ी बहुत-सी बातें उन्होंने मंच के साथ साझा की, जैसे पहली पत्नी श्यामा और फिर तेजी सिंह बच्चन के बारे मेें। उन्होंने मधुशाला की कई रुबाइयों का पाठ किया और बताया कि बच्चन जी जीवन को जीवंतता के साथ जीने वाले कवि थे। महात्मा गांधी ने भी उनकी मधुशाला की रुबाइयां सुनकर उसे हरी झंडी दे दी थी। उनकी आत्मकथा से जुड़े कई अनछुए पहलुओं पर भी उन्होंने प्रकाश डाला। गजानन पाण्डेय ने 'बच्चनजी के लोकप्रिय गीत' संकलन पर अपना प्रपत्र प्रस्तुत करते हुए कहा कि बच्चन जी ने अच्छे गीतों की रचना की। वे संवेदनशील कवि थे तभी तो उन्होंने लिखा- 'मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना, मैं फूट पड़ा, तुम कहते छंद बनाना।'  दर्शन सिंह ने बच्चन जी के साहित्य के भाव पक्ष और कला पक्ष पर बहुत ही सारगर्भित आलेख प्रस्तुत किया। ज्योति नारायण ने अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी में कहा कि बच्चन जी की सभी कृतियां चाहे वह मधुशाला हो या मधुबाला और मधुकलश पठनीय हैं लेकिन मधुशाला ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई। आज इस परिचर्चा के माध्यम से बच्चन जी के रचना संसार से जुड़ी ऐसी अनेक बातें सुनने को मिलीं, जिनके बारे में पहले जानकारी नहीं थी। 

             द्वितीय सत्र में भावना पुरोहित ने अपनी रचना 'एक फिल्मी गीत लिखूं' प्रस्तुत कर सभी को खूब हंसाया। उसके बाद मंजुला दूसी ने बुजुर्गों को समर्पित अपनी रचना 'इस उम्र में ना माता-पिता फिर बच्चे बन जाते हैं' का पाठ करके सबको अभिभूत कर दिया। सुनीता लुल्ला ने अपना गीत, 'मौसम रंगीं हो जाते जब, मधुमास तुम्हारा होता है' प्रस्तुत किया। पटनचेरू, संगारेड्डी से बिनोद कुमार गिरि ने अपनी रचना 'शाम ढली वो मयखाना चला, उसने कम पी यही गलती की' जैसे प्रतीकों के माध्यम से अपनी व्यंग्य रचना सुनाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। गजानन पाण्डेय ने 'अपने सुख में न भूलें पड़ौसी धर्म को' रचना प्रस्तुत करके अपने सामाजिक दायित्वों के निर्वहन की सीख दी। दर्शन सिंह ने 'गजब की तस्वीर उभरकर आई है' जैसी गम्भीर रचना का पाठ किया। सुहास भटनागर ने अपने चिर-परिचित अंदाज में अपनी रचना 'देखो इस नभ में कितने तारे, सभी चमकते दमकते रहते' प्रस्तुत की तो प्रदीप देवीशरण भट्ट ने 'हम बोले तो फिर क्या होगा' बहुत ही शानदार ढंग से सुनाई। विशेष अतिथि रिमझिम झा ने अपने भाव कुछ इस तरह प्रस्तुत किए, 'भूतपूर्व कवियों के गुण बहुत गा लिए, अब आओ एक नया इतिहास बनाएं', साथ ही सभी रचनाकारों की रचनाओं पर अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी प्रस्तुत की। ‌‌‌विशिष्ट अतिथि उर्मिला पुरोहित ने अपनी रचना का पाठ करते हुए 'आ मेरे मन के उपवन में हे प्रियतम छा जाओ, बनकर तुम सच्चे मीत मेरे, प्रेम पथिक बन जाओ' सभी का मन मोह लिया। संगीता शर्मा ने भी अपनी भावपूर्ण रचना प्रस्ततु की। संचालिका ने अपनी रचना 'दीप जल तम हर प्रकाश भर, अपने अंतर में उजास भर' प्रस्तुत की। अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए ज्योति नारायण ने अपनी रचना 'दीप हमने है जलाया, ओ सजन तेरे लिए' का सस्वर पाठ करके श्रोताओं की वाहवाही बटोरी। डॉ. सुमन लता, हैदराबाद और सुरेश चौधरी, कोलकाता ने श्रोताओं के रूप में गोष्ठी में अपनी भागीदारी निभाई। इस अवसर पर मंच की वरिष्ठ सदस्या भावना पुरोहित को षष्ठीपूर्ति के अवसर पर बधाई और शुभकामनाएं दी गईं। साथ ही मंच की तीन युवा सदस्याओं- मंजुला दूसी, आर्या झा और ऐश्वर्यदा मिश्रा के कहानी-संग्रह 'मंजूषा' के प्रकाशन पर उन्हें मंच की ओर से और समस्त सदस्यों की ओर से बहुत-बहुत बधाई दी गई। संस्थापिका ने सभी अतिथियों और सदस्यों के प्रति अपना हार्दिक आभार व्यक्त किया। बहुत ही उल्लासमय वातावरण में गोष्ठी सम्पन्न हुई।

- सरिता सुराणा

संस्थापिका

सूत्रधार साहित्यिक संस्था

हैदराबाद

23.11.2020

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