विश्व भाषा अकादमी की गुरुग्राम इकाई द्वारा अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर परिचर्चा गोष्ठी आयोजित
विश्व भाषा अकादमी गुरुग्राम इकाई द्वारा अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर ऑनलाइन परिचर्चा गोष्ठी आयोजित
October 10, 2020 • ✍️सरिता सुराणा • समाचार
विश्व भाषा अकादमी गुरुग्राम इकाई द्वारा शुक्रवार, 9 अक्टूबर शाम 4:00 बजे से अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर, जो पूरे विश्व में प्रतिवर्ष 11 अक्टूबर को मनाया जाता है, के उपलक्ष्य में एक ऑनलाइन परिचर्चा आयोजित की गई।परिचर्चा का आयोजन एवं संचालन गुरु ग्राम इकाई की उपाध्यक्षा डॉ० सविता स्याल ने किया । सर्वप्रथम उन्होंने हिंदी सहित सभी भाषाओं, कला एवं संस्कृति से संबंधित विश्व भाषा अकादमी के मंच को धन्यवाद देते हुए भारत का नेतृत्व करने वाले, चेयरमैन श्री मुकेश शर्मा जी के प्रति ऐसा मंच प्रदान करने के लिए आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा," एक ओर हम 'बालिका दिवस' का आयोजन कर उनके हितों की बात करते हैं और दूसरी ओर हमारे समाचार पत्र मासूम बच्चियों के बलात्कार और हत्या की दिल दहलाने वाले समाचारों से भरे पड़े हैं। हमें यह सोचने पर मज़बूर करते हैं कि ऐसे वातावरण में "बालिका दिवस" मनाना कितना सार्थक है? इस परिचर्चा में अनेक वरिष्ठ साहित्यकारों एवं शिक्षाविदों ने भाग लिया। मुख्य वक्ता के रूप में सुप्रसिद्ध साहित्यकारा एवं श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान से सम्मानित, डॉक्टर शील कौशिक ने जो सिरसा इकाई की अध्यक्षा भी हैं सारगर्भित विचार रखे। उन्होंने कहा- "बेटियों को शिक्षित करना एवं बहुमुखी प्रतिभाशाली बनाना अति आवश्यक है। समाज को उनके प्रति अपनी रूढ़िवादी सोच बदलनी होगी। शिक्षित और जागरूक माँ को भ्रूण हत्या के लिए विवश नहीं किया जा सकता|" उन्होंने शिक्षा के अस्त्र से बालिकाओं को सक्षम बनाने पर विशेष बल दिया।
इसके पश्चात डॉ.स्मिता मिश्रा जो हिन्दी की दो पत्रिकाओं , 'रचना संसार' एवं 'ज्ञान वाणी' की संपादिका हैं ,उन्होंने कहा कि "अभी भी बेटियों और बेटों की परवरिश में भेदभाव रखा जाता है। उन्होंने अपने विचार रखते हुए बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ के नारे को विस्तार देते हुए उसमें बेटी अपनाओ पर ध्यानाकर्षित किया।
आर्मी विद्यालय से सेवानिवृत्त अध्यापक तथा मोटिवेटर, स्पीकर,अकादमी के सदस्य श्री मनोज जी ने कहा कि बेटियों को कोमल छवि से उभरकर अब जूडो- कराटे सीख कर आत्मरक्षा करनी होगी। मनोज जी ने बेटियों को समाज और देश का गौरव बताते हुए उनकी हर क्षेत्र की उपलब्धियों को गिनवाया और हरियाणा की कल्पना चावला को समस्त हरियाणा का गौरव बताया।
हरियाणा इकाई की उपाध्यक्षा डा०कृष्णा जैमिनी ने कहा कि बेटियों के साथ-साथ बेटों को भी समझाने की आवश्यकता है और बेटियाँ भी अपनी सीमा में रहें, वे अपने संस्कार न भूलें। हम बड़े लोगों का यह कर्तव्य बनता है कि जहाँ कुछ गलत हो रहा हो उसको रोकें, बेटियों का मनोबल बढाने के लिए परिवार और समाज से उन्हें हर परिस्थिति में सहयोग देने की आवश्यकता है।
राज्य शिक्षक सम्मान और हिंदी अकादमी पुरस्कार से सम्मानित सुश्री शकुंतला मित्तल ,जो एक समाज सेविका होने के साथ-साथ हिन्दी सेवी भी हैं उन्होंने इतिहास की कुछ प्रसिद्ध कथाओं के उदाहरण देते हुए कहा कि नारी जाति का यौन शोषण, राजा महाराजाओं के समय से होता आया है। यह शोषण केवल पारिवारिक और सामाजिक मानसिकता बदलने और वैचारिक जागरूकता लाने से ही रोका जा सकता है।बालिकाओं को देह,भोग्या आदि की वस्तु न समझ कर उन्हें आत्मनिर्भर,स्वावलंबी बनाना आवश्यक है। बेटियों के साथ बेटों को भी संस्कार देने से ही समाज वैचारिक और सांस्कृतिक प्रदूषण से मुक्त होगा।
गुरुग्राम इकाई की अध्यक्षा डाॅ. वीना राघव जी ने गीता के आध्यात्मिक संदेश विशुद्ध प्रेम और धर्म को बालिकाओं और समाज के लिए परम आवश्यक बताते हुए सभी वक्ताओं, उपस्थित श्रोताओं और सभी अन्य प्रबुद्ध जनों का धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने कहा कि आज की बेटी सही शिक्षा और संस्कारों से ही अपने सपने पूरे कर सकती है|
इस अति संवेदनशील और ज्वलंत परिचर्चा में श्रोता वर्ग में रोहतक विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्राध्यापिका अंजना गर्ग,युवा कवि एवं साहित्यकार सुनील शर्मा, दिल्ली के लीलावती विद्या मंदिर विद्यालय की शिक्षिका जय चिल्लर और कविता शर्मा, अरूना कालिया और रवि यादव जी आदि ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति दी और प्रतिक्रिया काल में सभी श्रोताओं ने भी अपने संक्षिप्त विचार रखे। विशेषतः अंजना गर्ग जी ने सभी वक्ताओं के विचारों पर अपनी सारगर्भित प्रतिक्रिया से विषय सम्मत विचार अभिव्यक्त किए। अंततः बहुत ही वैचारिक मंथन के साथ यह परिचर्चा शानदार सफलता के साथ संपन्न हुई।
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