विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की सार्थकता

विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की

सार्थकता और इतिहास

5 Jun, 2020 20:00 IST|Sakshi
कांसेप्ट फोटो

स्टॉकहोम में पहला अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन

प्रकृति के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं हैं

5 जून को प्रतिवर्ष विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इसको मनाए जाने के पीछे उद्देश्य यह है कि पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाई जाए। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सन 1972 में पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था। इसको हम प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने का दिन कह सकते हैं। मनुष्य भी तो इसी पर्यावरण में सांस लेता है, जीता है। प्रकृति के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं, प्रकृति और मनुष्य का साथ चोली-दामन का साथ है। यह खास दिन मनुष्य जाति के अस्तित्व से जुड़ा है। दरअसल सन 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने पर्यावरण और प्रदूषण पर स्टॉकहोम (स्वीडन) में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया था, जिसमें तकरीबन 119 देशों ने हिस्सा लिया था। इसके बाद 5 जून को इसे नियमित रूप से मनाया जाने लगा।

आओ पेड़ लगाएं, धरती पर हरियाली बढ़ाएं

हर साल विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर दुनिया भर में अनेक देशों द्वारा आधिकारिक समारोह आयोजित किए जाते हैं। लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी के प्रकोप की वजह से अधिकांश लोग इसे डिजिटल रूप में मनाएंगे। लॉकडाउन ने भले ही हमें अपने घरों में कैद कर दिया था, लेकिन पर्यावरण पर इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है। हमारे पहाड़, नदियां और आस-पास का वातावरण पूरी तरह से नहीं तो बहुत स्वच्छ हो गया है और इसके पीछे कारण है हमारी जीवन शैली में बदलाव। अब इसी बदलाव को हमें स्थायी तौर पर स्वीकार करना है, तभी हम अपने पर्यावरण को स्वच्छ रखते हुए साफ हवा में सांस ले पाएंगे। पर्यावरण दिवस मनाने की सार्थकता तभी है, जब हम कुछ मूलभूत सिद्धांतों को अपने जीवन में व्यावहारिक रूप से प्रयोग में लाएं। 

पानी बचाएं, धरती बचाएं

शाकाहारी बनें, स्वस्थ रहें

समस्त पृथ्वी पर छः काया के जीव पाए जाते हैं- पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजसकाय, वायुकाय और वनस्पति काय। मनुष्य होने के नाते हमारा यह कर्त्तव्य है कि हम इन सभी जीवों की रक्षा करें। मगर आजकल देखने में ये आ रहा है कि मनुष्य अपनी स्वाद लोलुपता के वशीभूत होकर अभक्ष्य जीवों को भी अपना ग्रास बना रहा है। प्रकृति ने प्रत्येक जीव के खान-पान के लिए कुछ नियम तय किए हैं। मनुष्य को छोड़कर बाकी सब जीव अपनी जैविक प्रवृत्ति के अनुसार ही आहार ग्रहण करते हैं। मनुष्य के लिए भी शाकाहार ही सर्वोत्तम आहार माना गया है, लेकिन वह दूध, दही, दालें, अनाज और सब्जियों को छोड़कर मांसाहार को बढ़ावा दे रहा है। और तो और न खाने लायक जीवों की हिंसा करके विभिन्न बीमारियों को भी निमंत्रण दे रहा है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने खान-पान में संयम बरतें और उन्हीं चीजों का सेवन करें, जो हमारे लिए भक्ष्य हैं।

प्राकृतिक संसाधनों का सीमित उपयोग

हम इस बात से अनभिज्ञ नहीं हैं कि जिस तीव्र गति से हमारी जनसंख्या बढ़ती जा रही है, उस गति से प्राकृतिक संसाधन और ऊर्जा के स्रोत नहीं बढ़ रहे हैं। अतः ये हम सबका दायित्व है कि हम जल, थल, वायु, अग्नि और आकाश इन पंच तत्वों का उतना ही उपयोग करें, जितना आवश्यक हो। आज जल संकट हमारे समक्ष एक बड़ी चुनौती बनकर खड़ा है। हमारी खनिज संपदा, वन संपदा, ऊर्जा के स्रोत दिन-प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं। जल, जंगल और जमीन को बढ़ावा देने की बजाय हमने आदिवासियों को उनके पैतृक स्थानों से खदेड़ कर वहां कंक्रीट के जंगल बसा लिए हैं। हमारे चारों तरफ कारखानों से आग उगलती चिमनियों का धुआं है, रासायनिक गैसों का उत्सर्जन है, वाहनों से निकलने वाला धुआं है, ये सब मिलकर वातावरण को न केवल प्रदूषित कर रहे हैं वरन् ग्लोबल वार्मिंग का कारण भी बन रहे हैं। दिल्ली का प्रदूषण किस सीमा तक पहुंच गया है, यह हम में से किसी से छिपा हुआ नहीं है। अतः हमारे लिए यह जरूरी हो गया है कि हम अपनी आवश्यकताओं को सीमित करें। पानी, बिजली और अन्य संसाधनों का उतना ही उपयोग करें, जितनी जरूरत हो। हम अपनी सुविधा के लिए जितना प्रकृति से दूर होते जाएंगे, उतना ही प्राकृतिक आपदाओं को निमंत्रण देंगे।

जंगल बचाओ, जीवन बचाओ

सात्विक जीवन जिएं

हम सब जानते हैं कि आधुनिक युग विज्ञान का युग है। आज मनुष्य ने इतनी वैज्ञानिक प्रगति कर ली है कि अब उसने चन्द्रमा और अन्तरिक्ष में बस्तियां बसाने की योजना बना ली है। कुछ संगठनों ने तो बाकायदा प्लाॅट भी बुक कर लिए हैं। इंटरनेट के बिना जीवन की कल्पना करना असम्भव-सा लगने लगा है। आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स ने हमारे जीवन में प्रवेश करके हमें इस तरह जकड़ लिया है कि आज उनके बिना जीवन जीना दूभर लगता है। अभी इस कोरोना काल की ही बात करें तो लॉकडाउन के दौरान घर बैठे-बैठे हम एक-दूसरे से इसी इंटरनेट के माध्यम से जुड़े हुए थे। लोग अपने ऑफिस का काम वर्क फ्राॅम होम कर रहे थे, बच्चे भी ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे थे, कहने का तात्पर्य यह है कि अब हम आदिम युग में वापस तो नहीं जा सकते, लेकिन उसकी अच्छाइयों को तो अपना ही सकते हैं। पहले हमारे पूर्वज हर चीज का इस्तेमाल सीमित मात्रा में करते थे, चाहे वह पानी हो, बिजली हो, खाने-पीने का सामान हो या पहनने के लिए वस्त्र हों, लेकिन जब से हम ग्लोबल हुए हैं तब से हमें अपनी पारम्परिक रसोई, पारम्परिक परिधान और जीवनयापन के साधन एकदम बाबा आदम के जमाने के लगने लगे हैं और उनका परित्याग करके हमने अपने आपको आधुनिक कहलाने की पूरी तैयारी कर ली है।

इच्छाओं का सीमाकरण करें

आज हम खाने में चाइनीज, इटैलियन, मैक्सिकन और सी-फूड से कम की बात नहीं करते। हमारी सुविधा के लिए एक से बढ़कर एक फाइव स्टार होटल हैं, रेस्टोरेंट्स हैं, बार हैं, हुक्का बार भी हैं, मतलब अपनी आदतें बिगाड़ने के समस्त साधन मौजूद हैं, लेकिन स्वास्थ्य के लिए हितकारी साधन प्रयोग करने वाले विकल्प नहीं है। जो विकसित जीवन शैली न अपनाकर उसी पारम्परिक जीवन शैली को अपना रहे हैं, हमारी दृष्टि में वे गंवार हैं। अतः समय की मांग ये है कि हम फिर से सात्विक जीवन शैली अपनाएं, परिग्रह से बचें, पर्यावरण को प्रदूषण से बचाएं। कोशिश करें कि जितने संसाधनों का उपभोग हम कर रहे हैं, उन्हें पुनर्जीवित करें। प्रकृति और पर्यावरण के बीच बढ़ती दूरी को कम करने की कोशिश करें। स्मरण रहे कि बूंद-बूंद से घट भरता है। हमारी एक छोटी-सी कोशिश भी समाज में बड़ा परिवर्तन लाने में सफल हो सकती है।

वातावरण

इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस की थीम है- 'प्रकृति के लिए समय' तो हम अपना थोड़ा-सा समय अपने आस-पास के वातावरण को शुद्ध बनाने में लगाएं। स्वयं स्वच्छ रहें और लोगों को भी स्वच्छता के प्रति जागरूक करें। अपने मन में एक संकल्प करें कि हमें अपनी इस जीवनदायिनी धरती माता को बचाना है, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां सुरक्षित रहें। उन्हें आए दिन आंधी-तूफान, ओले, चक्रवाती तूफान, भूकम्प और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना न करना पड़े। उन्हें जलयुद्ध, भूमियुद्ध, रासायनिक हथियारों से युद्ध जैसे भयानक युद्धों का सामना न करना पड़े। उन्हें अपनी इस प्यारी धरती माता को छोड़कर कहीं और अपना बसेरा ना बसाना पड़े, तभी इस पर्यावरण दिवस को मनाने की सार्थकता सिद्ध होगी।

- सरिता सुराणा, वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार, हैदराबाद

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