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प्रदर्शन कलाओं में नाट्य शास्त्र की भूमिका पर एक दिवसीय नेशनल सेमिनार आयोजित

साक्षी समाचार में प्रकाशित न्यूज़

प्रदर्शन कलाओं में नाट्य शास्त्र की भूमिका पर सेमिनार आयोजित, वक्ताओं ने दिया यह संदेश

हैदराबाद : भक्ति, साहित्य और सांस्कृतिक अध्ययन शोध संस्थान, तुलसी भवन, उस्मानिया विश्वविद्यालय के डायरेक्टर प्रो प्रदीप कुमार द्वारा यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड सोशल साइंसेज के सेमिनार हॉल में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसका विषय था- 'प्रदर्शन कलाओं में नाट्य शास्त्र की भूमिका।'
आज यहां जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो केशव नारायण, भूतपूर्व प्रिंसिपल यूनिवर्सिटी कालेज ऑफ आर्ट्स एंड सोशल साइंसेज ओयू ने की। इसके मुख्य अतिथि प्रो सीएच गोपाल रेड्डी, रजिस्ट्रार उस्मानिया यूनिवर्सिटी और सम्मानित अतिथि प्रो डी रवीन्द्र, प्रिंसिपल यूनिवर्सिटी कालेज ऑफ आर्ट्स एंड सोशल साइंसेज थे। भूतपूर्व प्रिंसिपल वनिता महाविद्यालय की डॉ बी वाणी इस संगोष्ठी की मुख्य वक्ता थीं। ओयू के संस्कृत विभाग के प्रमुख डॉ विद्यानंद आर्य विशेष आमंत्रित अतिथि के रूप में शामिल हुए। वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखिका सरिता सुराणा भी इस कार्यक्रम में विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में उपस्थित थीं।


भक्ति, साहित्य और सांस्कृतिक अध्ययन शोध संस्थान के डायरेक्टर प्रो.प्रदीप कुमार, सरिता सुराणा, डॉ. बी वाणी और डाॅ. विद्यानंद आर्य
भक्ति, साहित्य और सांस्कृतिक अध्ययन शोध संस्थान के डायरेक्टर प्रो.प्रदीप कुमार, सरिता सुराणा, डॉ. बी वाणी और डाॅ. विद्यानंद आर्य
प्रो प्रदीप कुमार के अनुसार इस संगोष्ठी के आयोजन का उद्देश्य 'भरत मुनि द्वारा लिखित 'नाट्य शास्त्र' की परम्परा को आगे बढ़ाना और उसे संरक्षित करना है। नाट्य शास्त्र प्रदर्शित कलाओं का शास्त्र है। इसमें नाटक, संगीत और नृत्य सभी कलाएं शामिल हैं। टेक्नोलॉजी के युग में हमारे पास स्मार्ट फोन, टीवी, रेडियो, फिल्में और अन्य मनोरंजन के साधन उपलब्ध हैं। फिर भी नाटक की महत्ता आज भी कम नहीं हुई है। हैदराबाद में तो कई ऐसी रंगमंचीय संस्थाएं हैं, जो लगातार नाटकों का मंचन करती हैं और उन्हें अच्छे दर्शक भी मिलते हैं। युवा पीढ़ी भी नुक्कड़ नाटकों में रुचि लेने लगी है।


 भक्ति, साहित्य और सांस्कृतिक अध्ययन शोध संस्थान के डायरेक्टर, भूतपूर्व प्रिंसिपल और सेमिनार के प्रतिभागी
भक्ति, साहित्य और सांस्कृतिक अध्ययन शोध संस्थान के डायरेक्टर, भूतपूर्व प्रिंसिपल और सेमिनार के प्रतिभागी
सेमिनार का शुभारंभ मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन करके किया गया। सरस्वती वंदना के पश्चात मनीषा और उसकी साथी ने शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुति दी। सेमिनार के डायरेक्टर प्रो.प्रदीप कुमार ने सभी आमंत्रित अतिथियों और प्रपत्र प्रस्तुतकर्ताओं का परिचय दिया। तत्पश्चात सभी अतिथियों का सम्मान सेमिनार कन्वीनर प्रो धारेश्वरी के कर-कमलों द्वारा किया गया।
इस संगोष्ठी की बीज व्याख्यान कर्ता डॉ बी वाणी ने अपने संबोधन में कहा कि नाटक दु:खी व्यक्तियों को दु:ख से मुक्त करने की कला है। उन्होंने भरत मुनि के नाट्य शास्त्र के 36 अध्यायों में वर्णित रंगमंच, अभिनय, नृत्य, गीत, वाद्य, दर्शक, दसरुपक और रस निष्पत्ति के बारे में विस्तार से विवेचन किया। उन्होंने कहा कि साहित्य की तरह नाटक में भी नौ रस, भाव-विभाव आदि सब कुछ होते हैं, उनके सभी पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला।


भक्ति, साहित्य और सांस्कृतिक अध्ययन शोध संस्थान तुलसी भवन की ओर से डाॅ. वंदना का सम्मान करते हुए प्रो. धारेश्वरी
भक्ति, साहित्य और सांस्कृतिक अध्ययन शोध संस्थान तुलसी भवन की ओर से डाॅ. वंदना का सम्मान करते हुए प्रो. धारेश्वरी
डॉ विद्यानंद आर्य ने कहा कि प्राचीन काल में नाटक से संबंधित कलाकारों का उतना सम्मान नहीं होता था। उन्हें श्राद्धकर्म आदि में भी नहीं बुलाया जाता था। मनुस्मृति में काम, क्रोध, मोह और लोभ के साथ नाटक को भी वर्जनीय बताया गया था। परन्तु आज भरत मुनि का नाट्य शास्त्र नाटक के ग्रंथों में सर्वोपरि है। डॉ पी रमादेवी ने सामान्य अभिनय के अंतर्गत आने वाले भाव- सात्विक, वाचिक, आंगिक और आहार्य पर प्रकाश डाला। साथ ही उसे प्रेक्टिकल रुप में करके बताया।
डॉ सुमित्रा ने वाचिक अभिनय के बारे में बताते हुए कहा कि भरत मुनि ने हृदय, कंठ और सिर को इसके लिए उपयुक्त बताया, वहीं त्यागराजा ने नाभि, हृदय, कंठ, नासिका और सिर को वाचिक अभिनय के लिए श्रेष्ठ बताया। नागपुर यूनिवर्सिटी से पधारी प्रो संयुक्ता ने नाटक के दसरुपक और एकल अभिनय के बारे में बताया और साथ ही सजीव प्रस्तुति भी दी। विवेकानंद डिग्री कॉलेज की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ एच के वंदना ने नाटक की उत्पत्ति के बारे में और बेगमपेट गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज फार गर्ल्स से आईं के गीता ने रस सिद्धांत पर अपने विचार रखे। शोध छात्र आदित्य भारद्वाज ने रामायण में करुण रस और अन्य रसों के बारे में जानकारी दी। विजयवाड़ा से आई शोध छात्रा मनीषा ने भी नाटक के भाव और रसों पर विचार व्यक्त किए।
इसके अलावा अम्बेडकर कॉलेज से डॉ सावित्री, सिन्धु कॉलेज से डॉ पी पद्मा और डॉ संध्या, के वाई मंजुला, जे मनुजा, विज्ञान कॉलेज से डॉ शशिधर, तेलुगु यूनिवर्सिटी से डॉ विजयपाल, फिल्म डायरेक्टर डॉ नागेश्वर राव, तेलुगू अभिनेता डॉ हरिश्चंद्र, इंडियन बैंक के रिटायर्ड मैनेजर श्री राममोहन, योग के विशेषज्ञ श्री जयराम रेड्डी, भग्वत गीता के विशेषज्ञ अवधानी श्री मोहन राव, मिस्टर चक्रवर्ती, जे शिवप्रसाद, आरती नायक, श्रीमती स्वाति बाई आदि ने नाट्य शास्त्र से संबंधित विषयों पर अपने प्रपत्र प्रस्तुत किए। मिसेज आर्या ने नाटक में प्रयुक्त होनेवाली हस्त मुद्राओं पर संस्कृत में अपना प्रपत्र प्रस्तुत किया और उनकी साथी चैतन्या ने उन्हें प्रेक्टिकली करके बताया।
इस सेमिनार की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि इसमें प्रपत्र प्रस्तुतकर्ताओं ने संस्कृत, तेलुगु, हिन्दी और अंग्रेजी इन चारों भाषाओं में अपने-अपने प्रपत्र प्रस्तुत किए और सबने बहुत ही ध्यानपूर्वक उन्हें सुना। सुबह 10 बजे से शुरू हुआ सेमिनार शाम 5 बजे के पश्चात तुलसी भवन संस्थान की वाइस प्रेसिडेंट प्रो शकुभव्या के धन्यवाद ज्ञापन के साथ सम्पन्न हुआ। सभी प्रतिभागियों ने शीघ्र ही पुनः ऐसे सेमिनार आयोजन के लिए प्रार्थना की और एक उत्कृष्ट आयोजन हेतु प्रो प्रदीप कुमार को धन्यवाद दिया।
रिपोर्ट: सरिता सुराणा
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखिका
06.12.19

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