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क्या हैदराबाद पुलिस द्वारा किया गया एनकाउंटर समय की मांग था?

आज़ सुबह से ही पूरे देश में जश्न का माहौल है और तेलंगाना पुलिस की वाहवाही हो रही है। हो भी क्यों न, पुलिस ने काम ही ऐसा किया है। दिशा हत्याकांड के आरोपी पुलिस की कस्टडी में थे और जांच को आगे बढ़ाने के लिए पुलिस आज़ उन्हें घटनास्थल पर लेकर गई थी।

https://hindi.sakshi.com/telangana/2019/12/07/encounter-of-disha-accused-in-shadnagar
- सरिता सुराणा
'अब तक तो वो रोज खून के आंसू रोई होगी।
आज़ उसकी आत्मा को थोड़ी शान्ति मयस्सर हुई होगी।
ये तो एक ट्रायल मात्र है दोस्तों!
पिक्चर अभी बाकी है।
अभी तो कितनी निर्भया और दिशा का इंसाफ बाकी है।'
आज़ सुबह से ही पूरे देश में जश्न का माहौल है और तेलंगाना पुलिस की वाहवाही हो रही है। हो भी क्यों न, पुलिस ने काम ही ऐसा किया है। दिशा हत्याकांड के आरोपी पुलिस की कस्टडी में थे और जांच को आगे बढ़ाने के लिए पुलिस आज़ उन्हें घटनास्थल पर लेकर गई थी। जहां उन्होंने पुलिस को चकमा देकर भागने की कोशिश की। उनके हथियार छीनकर उन पर वार करने की कोशिश की। और परिणामस्वरूप पुलिस फायरिंग में चारों अपराधी मारे गए।
जय-जयकार
इस पूरे मामले में देखा जाए तो कई बातें निकल कर सामने आती है। पहली तो ये कि पूरे देश में आज़ हैदराबाद पुलिस की जय-जयकार हो रही है। लोग त्वरित कार्रवाई के लिए पुलिस को शाबाशी दे रहे हैं। लेकिन अगर यही फुर्ती पुलिस ने उस दिन दिखलाई होती, जिस दिन इन दरिंदो ने दिशा को किडनैप करके उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया और बाद में उसे निर्दयतापूर्वक जिन्दा जला दिया तो दिशा आज़ जिन्दा होती और हमारे बीच होती।
मौके पर पुलिस और लोग
मौके पर पुलिस और लोग
इंसाफ
खैर, बीते हुए समय को तो लौटाया नहीं जा सकता, लेकिन अब पुलिस द्वारा की गई इस त्वरित कार्रवाई से कम से कम दिशा के परिवार वालों को थोड़ा ही सही सुकून मिला होगा अन्यथा वे भी निर्भया के माता-पिता की तरह इंसाफ के लिए सालों भटकते रहते और हर दिन एक नई मौत मरते।
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एनकाउंटर
जहां पूरा देश हैदराबाद पुलिस को शाबाशी दे रहा है, वहीं कुछ लोग पुलिस के एनकाउंटर पर सवाल उठा रहे हैं। उनसे देश की जनता यह पूछना चाहती है कि वे लोग तब कहां गए थे, जब ये दरिंदे सहायता देने के नाम पर एक मासूम लड़की को उठाकर ले गए और बाद में उसकी वो दुर्दशा की कि जिसे देखकर हैवान भी कांप जाए। क्या गलती थी उसकी, यही कि वो एक औरत थी, असहाय थी, जो उनकी कुत्सित मनोवृत्ति को भांप नहीं पाई और उन पर विश्वास कर लिया और बदले में मिली नृशंस तरीके से जलाकर दी गई मौत।
नेतागण
कुछ नेतागण तो यहां तक कह रहे हैं कि यह आरोपियों के साथ न्याय नहीं है। सही तो तब होता, जब न्यायिक प्रक्रिया अपनाकर उन्हें सजा दी जाती। ऐसा कहने वालों को क्या ये नहीं पता कि हमारी न्यायिक प्रक्रिया कितनी जटिल और लम्बे समय तक चलने वाली है क्या निर्भया को अब तक न्याय मिला? और न जाने ऐसी और कितनी निर्भया रोज़ ऐसे दरिंदों की दरिंदगी का शिकार होती हैं? जब तक इन शैतानों में मौत का भय नहीं होगा, तब तक ये अपराधी जमानत पर रिहा होकर बेखौफ घूमते रहेंगे और फिर उन्नाव जैसे केसों की पुनरावृत्ति होती रहेगी।
केस शीशे की तरह साफ
मेरा मानना है कि न तो पुलिस और न ही जनता को हमेशा ऐसे एनकाउंटर करने चाहिए। लेकिन जहां पर केस शीशे की तरह साफ हो, वकील भी जिनके पक्ष में पैरवी करने को तैयार नहीं हों, वहां जनता का भरोसा कायम रखने के लिए त्वरित कार्रवाई करना आवश्यक है।
- सरिता सुराणा वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखिका हैदराबाद की कलम से...

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