विश्व मानवाधिकार दिवस ं
आज़ विश्व मानवाधिकार दिवस है। सम्पूर्ण विश्व में सभी मानव एक जैसे हैं, सबके समान अधिकार हैं। सबसे बड़ी बात ये कि सबको समान रूप से जीने का अधिकार है, इसी अवधारणा को और अधिक मजबूत करने के लिए ही शायद इसकी आवश्यकता महसूस हुई होगी और ये अस्तित्व में आया होगा। मगर बावजूद इसके आज भी न केवल हमारे देश में अपितु पूरे विश्व में कमजोर तबके के लोगों के मानवाधिकारों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन हो रहा है। उनमें सबसे अधिक उत्पीड़ित और शोषित है महिला वर्ग।
कहने को तो हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी की दुनिया में हमने अभूतपूर्व प्रगति की है। अंतरिक्ष मिशन और चंद्रयान मिशन में भी महिला वैज्ञानिकों का बहुत योगदान रहा है। हर क्षेत्र में महिलाएं प्रगति कर रही हैैं। यहां तक कि कई क्षेत्रों में वे पुरुषों से भी आगे निकल चुकी हैं और बस यही उनसे हज़म नहीं हो रहा है। आज़ न केवल अनपढ़ घरेलू महिलाएं बल्कि पढ़ी-लिखी महिलाएं भी घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न का शिकार हैं। आए दिन महिलाओं के विरुद्ध शारीरिक और मानसिक हिंसा की खबरें अखबारों में प्रकाशित होती रहती हैं और न्यूज़ चैनल उन्हें प्रमुखता से प्रसारित करते हैं। फिर भी अपराधियों में न तो कानून का और न ही समाज का कोई भय है। क्योंकि उन्हें मालुम है कि वे ऐसे जघन्य अपराध करके भी कानून की गिरफ्त में नहीं आएंगे और आसानी से जमानत पर छूट जाएंगे। उन्नाव केस इसका जीता-जागता उदाहरण है, जिसमें जेल से बाहर आते ही आरोपियों ने पीड़िता को जिंदा जला दिया और अभी भी उन्हें न तो इस बात का कोई दुख है और न ही पश्चाताप। क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से पता है कि अपनी उच्च राजनीतिक पहुंच के बल पर वे आराम से जमानत पर छूट जाएंगे और कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। इसलिए जब तक ऐसे अपराधियों में कानून का और सजा का भय नहीं होगा, तब तक ऐसे ही अपराध होते रहेंगे और हम मानवाधिकार दिवस मनाते रहेंगे।
- सरिता सुराणा
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखिका
10.12.19
कहने को तो हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी की दुनिया में हमने अभूतपूर्व प्रगति की है। अंतरिक्ष मिशन और चंद्रयान मिशन में भी महिला वैज्ञानिकों का बहुत योगदान रहा है। हर क्षेत्र में महिलाएं प्रगति कर रही हैैं। यहां तक कि कई क्षेत्रों में वे पुरुषों से भी आगे निकल चुकी हैं और बस यही उनसे हज़म नहीं हो रहा है। आज़ न केवल अनपढ़ घरेलू महिलाएं बल्कि पढ़ी-लिखी महिलाएं भी घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न का शिकार हैं। आए दिन महिलाओं के विरुद्ध शारीरिक और मानसिक हिंसा की खबरें अखबारों में प्रकाशित होती रहती हैं और न्यूज़ चैनल उन्हें प्रमुखता से प्रसारित करते हैं। फिर भी अपराधियों में न तो कानून का और न ही समाज का कोई भय है। क्योंकि उन्हें मालुम है कि वे ऐसे जघन्य अपराध करके भी कानून की गिरफ्त में नहीं आएंगे और आसानी से जमानत पर छूट जाएंगे। उन्नाव केस इसका जीता-जागता उदाहरण है, जिसमें जेल से बाहर आते ही आरोपियों ने पीड़िता को जिंदा जला दिया और अभी भी उन्हें न तो इस बात का कोई दुख है और न ही पश्चाताप। क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से पता है कि अपनी उच्च राजनीतिक पहुंच के बल पर वे आराम से जमानत पर छूट जाएंगे और कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। इसलिए जब तक ऐसे अपराधियों में कानून का और सजा का भय नहीं होगा, तब तक ऐसे ही अपराध होते रहेंगे और हम मानवाधिकार दिवस मनाते रहेंगे।
- सरिता सुराणा
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखिका
10.12.19
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