महाकवि निराला रचित सरस्वती वंदना
वर दे! वीणावादिनी वर दे!
प्रिय स्वतंत्र रव अमृत मंत्र नव
भारत में भर दे, भर दे। वर दे।
काट अंध उर के बंधन स्तर
बहा जननी ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष भेद तम हर, प्रकाश भर
जगमग जग कर दे, कर दे। वर दे।
नवगति, नवलय ताल छंद नव
नवल कंठ नव जलद मंद्र रव
नव नभ के नव विहग वृंद को
नभ पर नव स्वर दे, स्वर दे। वर दे।
वीणावादिनी वर दे, वर दे!!

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